समय चक्र - कविता - ओम प्रकाश श्रीवास्तव "ओम"

समय चक्र
एक ऐसा चक्र है 
जो बीज को फल बनाता,
आदमी को औक़ात दिखाता,
कभी राजा बनाता तो
कभी भिखारी बना देता।
समय की धुरी पर बस
चकरघिन्नी बन मानव
बस! घूमता रहता है।
वेदों और पुराणों में भी
कोई ऐसा बलशाली नहीं मिला
जिसने समय को अधीन बनाया।
विज्ञान अपनी चरम सीमा पर है,
मानव को धरा से चाँद पर पहुँचाया,
पानी में भी आग जलाया,
पर जीवन का अंत समय कब है
कोशिश हज़ार करके भी
आज तक न जान पाया।
समय की अपनी व्यवस्था है
जिसमें अच्छा बुरा, ऊँच नीच,
सुख दुख, उत्थान, पतन 
सब समाहित हैं।
इसीलिए समयानुसार
समय की क़द्र करना ही
मानव जगत की रीढ़ रज्जु है।

ओम प्रकाश श्रीवास्तव "ओम" - कानपुर नगर (उत्तर प्रदेश)

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