करूँ समर्पण तन मन भारत,
वन्दहुँ धरणी देश विजय हो।
गाऊँ जन मन गान तिरंगा,
एक राष्ट्र परिवेश उदय हो।
लज्जा श्रद्धा प्रीति वतन बन,
नारी शक्ति सम्मान सदा हो।
मातृभूमि धरा भारत प्यारा,
मनुज धर्म अभिषेक हृदय हो।
विस्मित हृदय लखि द्रोही वतन,
बिके सकल का सर्वनाश हो।
घृणा द्वेष संदेह पूर्ण जो,
गद्दार स्वदेशी शत्रु अंत हो।
घृणा द्वेष दंगा हत्या रत,
अंधकार बन जो स्वदेश हों।
बस सत्ता के लालच में फँस,
बाँट रहे परिवेश मुक्त हो।
एक द्वार हो बंद सोच पथ,
खुले द्वार शुभ लोकतंत्र हो।
रख नेक सोच सत राह क़दम,
मिले लक्ष्य उपहार अमन हो।
त्याग शील परहित अर्पण मन,
देशप्रेम चित्त भक्ति उदय हो।
खुले द्वार हर चाह राह जन,
पौरुष यश आवृत्त सदय हो।
राष्ट्र मान अरमान शान मन,
आन ध्वजा तिरंगा ध्वज हो।
दुर्गम ध्येय द्वार बने सहज,
धीर वीर हर जंग विजय हो।
करे समर्पण कवि मन निकुंज,
जीवन बस, संघर्ष वतन हो।
तोड़ द्वार हर विघ्न प्रगति पथ,
खुले द्वार उत्कर्ष यतन हो।
जीओ ख़ुद संघर्ष राष्ट्र हित,
प्रगति देश अवदान निहित हो।
बलिदानी स्वयं सीमान्त वतन,
हर क़ीमत पर पुरुषार्थ नमन हो।
सुभग सलोना वतन चारुतम,
चहुँ विकास नवरंग भरा हो।
लाज कोख रख अम्ब भारती,
अर्पण जीवन वतन धरा हो।
युवाशक्ति प्रीतम नव भारत,
विघ्नों को जो चीड़ सृजित हो।
बन सजन समर्पण तन मन धन,
चहुँ शान्ति सुखद भारत जय हो।
मातृभूमि अनमोल धरोहर,
करूँ समर्पण देह क्षणिक हो।
जग कीर्ति वतन सीमा रक्षण,
ख़ुशी अमन मुस्कान वतन हो।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली