संदेश
जंगल युग की ज़रूरत - लेख - देवेन्द्र नारायण तिवारी "देवन"
सभी जीवों में अपना भोजन स्वयं बनाने की क्षमता नहीं होती। अपने भोजन की पूर्ति के लिए जीव उत्पादकों पर निर्भर होते हैं। और उत्पादक हरे प…
फ़रमान करें तो - ग़ज़ल - अविनाश ब्यौहार
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेल फ़ऊलु तक़ती : 22 22 21 121 आओ हम संधान करें तो। सिर चढ़ता अभिमान करें तो।। गर नायाब ग़ज़ल लिखना है, रुक्न, बहर…
क्या होता है सम्मान - कविता - डॉ. विपुल कुमार भवालिया "सर्वश्रेष्ठ"
कचरे के ढेर में से खाना उठाता, कभी किसी दुकान पर खाने के लिए पिटता, कभी किसी की टाँगों से लिपटता, उसे नहीं पता क्या होता है, सम्मान। क…
ज़िंदगी बसर कर - कविता - विकाश बैनीवाल
इतना नाज़ुक नहीं तन मामूली आग से राख हो जाए, यह राख तज़र्बों की ढेरी है। इधर रेत फिसली मुट्ठी से गर्म-गर्म हवा निकली, बे-वक़्त कंबल ओढ़ स…
पर्यावरण का महत्व - लेख - नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ईश्वर ने पृथ्वी का निर्माण किया और फिर उसके चारों तरफ़ एक भौतिक तत्वों का आवरण निर्मित किया, जिससे इस पृथ्वी पर जीवन संभव हो सके। इसी आ…
चिड़िया की वेदना - गीत - भगवत पटेल
मेरी इक छत की मुँडेर से, बोले एक चिरैय्या, सुन भैय्या! सुन भैय्या! सुन भैय्या!! पानी नही बरसाता बादल, मैं प्यासी की प्यासी, भूखे प्यास…
पर्यावरण - कविता - नीरज सिंह कर्दम
हरियाली का कभी होता था डेरा जंगल और ख़ूब अँधेरा, जानवरों की दहाड़, पक्षियों का डेरा, आज वहाँ पर है फ़ैक्टरियों का बसेरा। आसमाँ भी बिना प…
प्रकृति और मानव - दोहा छंद - महेन्द्र सिंह राज
समय बहुत विपरीत है, बुरा सभी का हाल। सावधानी रखो सभी, चलो सभलकर चाल।। इक दूजे की मदद ही, हो मानव का कर्म। कोरोना बन घूमता, आज मनुज क…
आओ मिल कर पेड़ लगाएँ - कविता - गणपत लाल उदय
आओं सभी मिल कर पेड़ लगाएँ, पर्यावरण को साफ़ स्वच्छ बनाएँ। पेड़ो से ही मिलती है ऑक्सीजन, जिससे जीवित है जीव और जन।। पढ़ा है मैने पर्यावर…
लाज बचा पर्यावरण की - कविता - सुनील माहेश्वरी
हे मानव धन्य है तू, धन्य है तेरा स्वरूप, उद्देश्य भी महान तेरा, इसको न कर कुरूप। पर्यावरण को नष्ट करके, क्यूँ कर रहा विनाश तू, आगे कैस…
आओ पर्यावरण दिवस मनाएँ - कविता - अतुल पाठक "धैर्य"
आओ पर्यावरण दिवस मनाएँ, पहले इसे बचाने की क़सम खाएँ। पेड़ कभी न काटे जाएँ, गर स्वार्थी मानव इंसान कभी बन पाएँ। परिवेश में पेड़-पौधे पशु-प…
कभी छोड़ कर नहीं जाते पिता - कविता - सतीश श्रीवास्तव
इतनी दूर क्यों चले जाते हो पापा, जब से गए हो दूर बहुत याद आते हो पापा। बेटा कहाँ गया हूँ मैं क्यों होते हो उदास, देखो तो थोड़ा आँखें…
तुम लड़की हो - कविता - ईशा शर्मा
तुम लड़की हो, तुम क्यों बोलती हो? तुम्हारा बोलना उन्हें पसंद नहीं, तुम जो यूँ नज़रें नीची करने की बजाय लड़कों की आँखों में आँखें डाल क…
मृत्यु से पहले मरना नहीं है - गीत - हरवंश श्रीवास्तव "हर्फ़"
रात्रि कालिमा बाहुपाश में, है दिव्य दिवाकर को घेरे। अंधियारों के पीछे पीछे बेबस दौड़ रहे सवेरे।। मन में रख मधुमास, पतझड़ों को भरना नहीं …
छवि (भाग २) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२) प्रलय क्षीर सागर में मचता, शयन करे गोविंद ज्यों। सृष्टि-सृजन करते हैं ब्रह्मा, बैठ-क्रोड़ अरविंद ज्यों।। जड़-चेतन का यही समन्वय, सृष…
मनुहार - गीत - प्रीति त्रिपाठी
रात्रि की निस्तब्धता में, चाँदनी के द्वार जाऊँ। सूर्य की मनुहार में फिर से प्रभाती राग गाऊँ।। शून्य की मानिंद, जीवन फिर उसी से हारके, …
मंज़र - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
पहले सुना करते थे, अकाल का मंज़र और महामारियों की कहानियाँ। लेकिन इस कोरोना काल में, अब उठ रही है, एक नहीं कई अर्थियाँ। माँ का लाल बिछु…
किसी के काम आओ - मनोरम छंद - विशाल भारद्वाज "वैधविक"
शोर भी है मन व दिल में, काम भी है ज़िंदगी में। जीतना है जीत जाओ, पर किसी के काम आओ। काम भी ऐसा करो की, बात हो सब के अमन की। जीतना है ज…
कमी हैं एक दोस्त की - कविता - चीनू गिरि
जो बिन कहे, मेरा हाल समझ ले! ख़ुद तो पागल हो, मुझे भी पागल कर दे! अल्फ़ाज़ कम, ख़मोशी ज़्यादा समझे! उदासी में भी हँसा दे, हसते हसते रुला…
आवारा परदेशी - गीत - अभिनव मिश्र "अदम्य"
मै आवारा परदेशी हूँ, मेरा नही ठिकाना रे, ओ मृग नयनों वाली सुन ले, मुझसे दिल न लगाना रे। जब तीर नज़र का किसी जिगर को पार कभी कर जाता है,…
गुज़रे हुए लम्हे - कविता - अतुल पाठक "धैर्य"
मुस्कुराता हुआ चेहरा उसका जब क़रीब से देखा था, हुआ शादाब दिल जो खिल उठा था। गुज़रे हुए लम्हे फिर लौटकर तो नहीं आते, पर यादों का कारवाँ ह…
साइकिल से निरोगी काया - लेख - मंजूरी डेका
गांधी जी ने कहा था- "एक सीमा तक भौतिक तालमेल एवं आराम आवश्यक है, लेकिन उसके बाद यह सहायता के बजाय अवरोध बन जाता है।" आज दुनि…
सब मिल कर पेड़ लगाए - गीत - रमाकांत सोनी
पेड़ लगाओ सब मिल कर, जीवन की जंग जीतनी है। सोचो बिन प्राणवायु के, मुश्किलें आएँगी कितनी है।। सोचो समझो मनन करो, कारण सहित भेद पहच…
ज़मीर - कविता - सरिता श्रीवास्तव "श्री"
क्या ज़मीर देखा किसी ने, इसकी बातें सुनी किसी ने। लालच इतना बढ़ जाता है, कब ज़मीर की वह सुनता है।। करे कोई न मदद किसी की, यह महिमा है इ…
क्षमा - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
क्षमा मनुज भूषण जगत, है प्रतीक आचार। त्याग शील गुण कर्म पथ, धवलकीर्ति आधार।। क्षमाशील पौरुष सबल, जीवन में नित जीत। शरणागतवत्सल वही, क्…