कभी छोड़ कर नहीं जाते पिता - कविता - सतीश श्रीवास्तव

इतनी दूर
क्यों चले जाते हो पापा, 
जब से गए हो दूर
बहुत याद आते हो पापा।
बेटा कहाँ गया हूँ मैं
क्यों होते हो उदास, 
देखो तो थोड़ा आँखें मींचकर
मैं बैठा हूँ
तुम्हारे ही आसपास।
उस दिन जब सड़क पार करते तुम्हें
किसी ने हाथ खींच कर बचाया था,
कौन था वहाँ
मैं ही तो आया था।
जब तुम्हारे मन में 
काम पर जाने का
आलस बसता है, 
तुम्हें पता है तुम्हारे कान
कौन आकर कसता है।
वह जो तुम्हारी बहन
गीत गुनगुना रही थी, 
तुम्हें पता है किसको सुना रही थी।
तू अपने मन में
आज क्या क्या गुन रहा था, 
बहन का गीत और
तुम्हारे मन की बात
मैं पास में बैठा सब सुन रहा था।
तुम्हें पता है 
पिता कितने जतन से 
जीवन में एक घोंसला बनाते हैं, 
बच्चों की मुस्कुराहट में
जीवन की ऑक्सीजन पाते हैं।
घर के कण कण में हैं पिता,
परिवार की ख़ुशियों में हैं पिता,
समाज की स्मृतियों में हैं पिता,
और जब
अपनी साँस साँस में
पल पल सामने पाते हैं पिता, 
कभी छोड़ कर नहीं जाते हैं पिता।

सतीश श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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