क्या होता है सम्मान - कविता - डॉ. विपुल कुमार भवालिया "सर्वश्रेष्ठ"

कचरे के ढेर में से खाना उठाता,
कभी किसी दुकान पर खाने के लिए पिटता,
कभी किसी की टाँगों से लिपटता,
उसे नहीं पता क्या होता है, सम्मान।
क्या होता है, सम्मान।

उसे, उस दुर्गंध भरा कचरे का बोरा ही,
लगता है, स्कूल के बस्ते के समान,
उसमें ही मस्त रहना है, बस उसे ही,
उसे नहीं पता क्या होता है, सम्मान।
क्या होता है सम्मान।

ना कपड़े की सुध, ना नहाने का ठौर,
ना कोई आर.टी.ई., ना कोई किताब,
ना कोई सवाल, ना जवाब, ना ख़्वाब,
उसे नहीं पता, क्या होता है सम्मान।
क्या होता है सम्मान।

डॉ. विपुल कुमार भवालिया "सर्वश्रेष्ठ" - अलवर (राजस्थान)

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