हे मानव धन्य है तू,
धन्य है तेरा स्वरूप,
उद्देश्य भी महान तेरा,
इसको न कर कुरूप।
पर्यावरण को नष्ट करके,
क्यूँ कर रहा विनाश तू,
आगे कैसे जीएगा फिर,
मनन इसका कर तू।
गहरी चुनौती जीवन तेरे,
दे कुछ नया आयाम तू ,
प्रकृति की देह को,
न क्षति अब पहुँचा तू।
ना सत्य कर उस बात को,
आ बैल मुझे मार तू,
नहीं बचेगा जीवन तेरा,
इसका कर मलाल तू।
करता रहा गर यूँ मनमानी,
अस्तित्व होगा फिर संकट में,
स्वार्थ और अहम में आकर,
अपने आप का हिंसक न बन तू।
सुनील माहेश्वरी - दिल्ली