नृपेंद्र शर्मा "सागर" - मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
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पर्यावरण का महत्व - लेख - नृपेंद्र शर्मा "सागर"
पर्यावरण का महत्व - लेख - नृपेंद्र शर्मा "सागर"
शनिवार, जून 05, 2021
ईश्वर ने पृथ्वी का निर्माण किया और फिर उसके चारों तरफ़ एक भौतिक तत्वों का आवरण निर्मित किया, जिससे इस पृथ्वी पर जीवन संभव हो सके।
इसी आवरण को जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है हम पर्यावरण कहते हैं।
पर्यावरण जिसमें जल, जंगल, ज़मीन, हवा और सूर्य का प्रकाश भी सम्मिलित है। इसी सूर्य के प्रकाश को संतुलित करके हम तक पहुँचाने के लिए प्रकृति ने हमारी पृथ्वी के चारों ओर वायुमंडल के ऊपर एक सुरक्षा कवच का निर्माण किया है जिसे हम ओज़ोन परत के नाम से जानते हैं।
हमें ये भली-भाँति पता है कि यदि ये ओज़ोन परत किसी कारण से क्षतिग्रस्त हुई, जो कि धीरे-धीरे हो भी रही है तो सूर्य का प्रकाश जो अभी हमारे लिए जीवनदायक है वही कई गुना तेज़ होकर अग्नि की लपटों के समान हम पर गिरेगा और समस्त जीवन पल भर में स्वाहा हो जाएगा।
वर्षों से पर्यावरणविद्व हमें चेताविनि देते आ रहे हैं कि हमारी कुछ अनचाही भूलें कुछ ऐश्वर्यदायक भौतिक संसाधनों के प्रयोग हमारे वातावरण में गर्मी बढ़ा रहे हैं जिसे उन्होंने 'ग्लोबल वार्मिंग' नाम दिया है। हमारा ग्लोब अर्थात हमारी पृथ्वी जिसपर हम रहते हैं वह निरन्तर गर्म हो रही है जो जीवन के लिए ठीक नहीं है। और इस ग्लोबल वार्मिंग का कारण है चारों ओर से फैलाया जा रहा गर्म धुआँ जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड, मोनो कार्बन, सल्फर, मीथेन, नाइट्रोजन जैसी कितनी ही ऐसी गैसें जो हमारे ग्लोब की गर्मी को बढ़ाने के साथ ही ओज़ोन परत को भी नुकसान पहुँचा रही हैं।किंतु हम सब जानते हुए भी इसे रोकने के स्थान पर दिन-प्रतिदिन और बढ़ाते जा रहे हैं।
ऐसे ही कई प्रकार के रेडियोधर्मी विकिरण से कई पक्षी प्रजाति लुप्त हो चुकी हैं और कई छोटे कीट-पतंगें जो प्रकृति में जीवन संतुलन का कार्य करते थे वे अब समाप्त हो चुके हैं।
मनुष्य का भौतिक संसाधनों का लालच वायु प्रदूषण के साथ ही दिन-प्रतिदिन जंगलों को काटकर वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की प्राकृतिक शक्ति को भी नष्ट करता जा रहा है। और जल का भी क्षरण और निरन्तर दोहन किसी भी क्षण शुद्ध जल का संकट उत्पन्न कर सकता है।
इस सब का परिणाम अभी इस कोरोना महामारी के चलते देखने को मिला जब ऑक्सीजन के लिए त्राहि मच गई। हमारे शास्त्रों और पर्यावरण के विद्वानों का कथन है कि पीपल, शमी, और बरगद के पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन उत्सर्जित करते हैं और नीम का पेड़ सबसे अधिक जीवाणु रोधक होने के साथ ही पर्यावरण को शुद्ध करने का कार्य करता है। किंतु अफ़सोस अब ना तो नीम नज़र आता है और ना ही बरगद और पीपल, फिर हवा शुद्ध कैसे हो। गाड़ियाँ और चिमनियाँ तो निरन्तर बढ़ रही हैं और वृक्ष कम होते जा रहे हैं। यदि ये असंतुलन ऐसे ही चलता रहा तो पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने का दंड प्रकृति हमें ऐसे ही महामारियों के रूप में देती रहेगी।
इसलिए हमें जागरूक होने की आवश्यकता है अपने पर्यावरण अपने जीवन कवच के प्रति। और ये कर्तव्य हम सबका है, इसमें सभी को मिलकर ही कार्य करना होगा।
मेरी सरकारों से इस संबंध में एक अपील है कि कालोनियों के नक्शे तब तक पास ना किए जाएँ जब तक की हर कॉलोनी में ऐसा पार्क ना हो जिसमें नीम, पीपल और बरगद का वृक्ष लगा हो।
ऐसे ही लोगों को भी चाहिए की घर बनाते समय इतनी जगह अवश्य खाली छोड़े जिसमें नीम गिलोय और शमी का वृक्ष लग सके। उसके बदले आप दूसरी मंजिल बनाकर इस जगह की पूर्ति कर सकते हैं।
हम सभी को भविष्य के जीवन को सुरक्षित रखना है तो पर्यावरण अर्थात जल, जंगल, जीव और ज़मीन की सुरक्षा के विषय में गंभीरता से सोचना होगा और इनके संरक्षण का कार्य मिलजुल कर करना होगा।
वृक्षों के महत्व पर कुछ पंक्तियाँ कहना चाहूँगा:
"चारों ओर फैली हरितिमा, धरती का हरा गलीचा है।
ऐसा है भारत देश मेरा, जो एक सम्पूर्ण बगीचा है।
इसकी धरती है हरी भरी, हमने इसे खून से सींचा है।
है।
पाते हैं हम शुद्ध हवा, उसका कारण ये हरित ही है।
ये वृक्ष हमारे बन्धु हैं, जिनसे नित अमृत झरता है।
ऐसा है भारत देश मेरा, जो एक सम्पूर्ण बग़ीचा है।
ये पेड़ नहीं हैं भाई हैं, ये मानव जीवन रक्षक हैं।
जो काट रहे इन वृक्षों को, वे जीवन सुख के भक्षक हैं।
इसलिए हे भारत के वीरों, हरितिमा का नित सम्मान करो।
कटने ना पाए कोई वृक्ष, इसका तुम सदा ही ध्यान करो।"
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