कमी हैं एक दोस्त की - कविता - चीनू गिरि

जो बिन कहे,
मेरा हाल समझ ले!
ख़ुद तो पागल हो,
मुझे भी पागल कर दे!
अल्फ़ाज़ कम,
ख़मोशी ज़्यादा समझे!
उदासी में भी हँसा दे,
हसते हसते रुला दे!
जो छोटी छोटी बातों पे लड़ें,
बड़ी बड़ी ग़लती माफ़ कर दे!
उसमे बचपना हो,
समझदार मुझसे ज़्यादा हो!
भले वो सिरफिरा हो,
या आवारा हो,
मगर मेरे लिए मेरी ढाल हो!
जो पिता की तरह समझाए,
भाई की तरह लड़े,
माँ की तरह प्यार करे!
उसकी दोस्ती मे वफ़ा हो,
लबों पर दुआ हो!
वैसे तो सब रिश्ते मिले हैं मुझे,
बस कमी हैं तो एक दोस्त की!

चीनू गिरि - देहरादून (उत्तराखंड)

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