जंगल युग की ज़रूरत - लेख - देवेन्द्र नारायण तिवारी "देवन"

सभी जीवों में अपना भोजन स्वयं बनाने की क्षमता नहीं होती। अपने भोजन की पूर्ति के लिए जीव उत्पादकों पर निर्भर होते हैं। और उत्पादक हरे पौधे हैं। जब की हरे पौधों के जंगल समाप्त होने के साथ ही बहुत से जीव विलुप्त हो गए हैं, जिससे पारिस्थितिकी असंतुलन में लगातार वृद्धि हुई है। पारिस्थितिकी में असंतुलन मानव की बढ़ती आकांक्षाओं के कारण हुआ है|

5 जून 1974 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा स्वीडन की राजधानी में पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया गया था। जिसका उद्देश्य पर्यावरण के प्रति सामाजिक व राजनैतिक जागृति लाना था। जिसमें लगभग 119 देशों ने हिस्सा लिया था, और उस दिन से हर वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाने लगा। जिसमें आज लगभग 193 देश हिस्सा लेते हैं।

इस बार की थीम पारिस्थितिकी तंत्र बहाली (ecosystem restoration) है।
सर्वप्रथम तो हमें पारिस्थितिकी को समझना होगा - सरल शब्दों में "जीवों व जीवों के समुदाय का वातावरण से भौतिक व जैविक रूप से बने विशेष संबंध के कारण जो संतुलन आता है उसे पारिस्थितिकी (Ecosystem)  कहते हैं"। मानव ने विकास तो किया है परंतु विकास की धुन में प्रकृति को अस्त व्यस्त भी कर दिया है। जिस कारण पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह बाधित हुआ है। बहुत से जीव, पक्षी, पेड़, पहाड़, विलुप्त ही हो गए हैं। आवश्यकता है जीवो की, उन पौधों की जो पारिस्थितिकी के संतुलन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। हम अपनी सुविधा और ज़रूरत के अनुसार प्रकृति का दोहन करते चले गए। जीवों तथा पौधों के ख़त्म होने पर कभी ध्यान ही न दिया।
बस कभी वर्ष में एक बार पर्यावरण का उत्सव मनाया फिर वापस ज़िंदगी की आपाधापी में दौड़ने लगे, जिससे पूरा का पूरा पारिस्थितिक तंत्र असंतुलित हो गया है।

अब जरूरत है एक बार फिर से जंगल युग की।
उत्तर प्रदेश में कभी बहुतायत में पाए जाने वाले गिद्ध आज पूरी तरह से विलुप्त हो चुके हैं। गिद्ध (Vulture) को प्रकृति का सफ़ाई-कर्मी कहा जाता है। ऐसे ही बहुत से जीव आज लगभग विलुप्त हो चुके है। जिस कारण पारिस्थितिकी असंतुलित हुई है। प्रदूषण स्तर लगातार बढ़ रहा है, ऑक्सीजन घट रही है। नदियाँ सूख रही हैं। तकनीक के प्रयोग द्वारा बोरवेल मशीनों से ग्राउंड वाटर को ख़त्म किया जा रहा है। जो जीवन को विनाश की ओर ले जा रहा है। ऐसी स्थिति में हमें वापस से एक जंगल युग की आवश्यकता है। अर्थात मिलकर पेड़ लगाने होंगे, वर्षा के जल का संचयन करना होगा, प्रदूषक कारकों को बंद करना पड़ेगा, जिससे कि प्रकृति अपने मूल स्वरूप में आकर पारिस्थितिकी को संतुलित कर सके।

देवेन्द्र नारायण तिवारी "देवन" - महोबा (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos