संदेश
जाड़े की धूप - कविता - निशांत सक्सेना "आहान"
शिशु की मासूम मुस्कान सी जाड़े की धूप, अंबिका की अनकहे स्नेह सा जाड़े की धूप, तनु पर किसी अपने की गर्माहट सी जाड़े की धूप, एक अनकहा सु…
ख़ुशियों का जहान बनो - ग़ज़ल - श्याम निर्मोही
अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़अल तक़ती : 1222 1222 1222 12 किसी रोते हुए चेहरे की मुस्कान बनो। दबे, कुचले, मज़लूमों की ज़ुबान बनो…
दिन वही है - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
मग्न कोई कहीं जन्म दिन के जश्न में है, कहीं कोइ रंज निमग्न, मरन दिन के। दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न, सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-ब…
नारियाँ - कविता - ममता रानी सिन्हा
हम नारियाँ सदा बहुत मज़बूत होती हैं, जग के लिए सदा प्रथमा बुद्ध होती हैं, सृष्टि संचालन निमित्त मूलाभूत होती हैं, हाँ! सचमुच हम बहुत मज़…
तुम कौन - गीत - डॉ. देवेन्द्र शर्मा
मृदुल मृदु हास से नंदित मुझे नित प्राप्त अभिनंदन, देह का रोम-रोम पुलकित झुका करता है अभिवंदन। न जाने ब्याज से किन-किन चरण मम छू ही …
बरसात - कविता - नूरफातिमा खातून "नूरी"
उमड़-घुमड़ कर बादल आए, काले-काले बादल छाए। कड़-कड़ बिजली कड़कने लगी, धरती मानो फड़कने लगी, पक्षी दुबक गए घोंसलों में, जान आई नई कोंपलो…
ख़ामोशी - लघुकथा - सुधीर श्रीवास्तव
आज आप सुबह से बहुत चुपचाप हैं। क्या बात है? तबियत तो ठीक है न? रमा ने अपने पति राज से पूछा। राज बोले- नहीं लखन की माँ। बस किसी निर्णय …
सच की खोज में एक संन्यासी - कविता - विनय विश्वा
जब घोर अँधेरा छाए तब मानवतावादी चिंतन को लेकर 'बुद्ध' विश्व पटल पर आएँ। सच को जानने की बेचैनी में सिद्धार्थ से 'बुद्ध'…
अविचल-पथ - कविता - प्रवीन "पथिक"
छोड़ विसंगति की राहें, सुदृढ़ कर निज दुर्बल बाहें। न तुझसे होगी कभी चूक, तब लक्ष्य होगा तेरे सम्मुख। जो डरकर तू गया रुक, हो जाएगा पथ स…
मुस्कुराती रहो - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन तक़ती : 212 212 212 212 ज़िंदगी तुम सदा मुस्कुराती रहो। साथ उम्मीद के दिन बिताती रहो।। मात में ही छु…
मददगार - कविता - आराधना प्रियदर्शनी
कितनी बेबसी महसूस होती है तब, जब हम चाह कर भी किसी की मदद नहीं कर सकते, काश किसी के ख़ुशी के ख़ातिर, मर जाते जो मर सकते। सोचो कैसा लगता …
बढ़ते क़दम - कविता - सुनील माहेश्वरी
रास्तों को जोड़, काँटों को तोड़, आसमान को हम छूने चले हैं। बदलने चले हैं ज़माने को, हम आगे बढ़ने चले हैं। दोस्तों इरादे नेक हों तो, मंज़िल…
सरल होना - गीत - संजय राजभर "समित"
प्रेम दया सहयोग समर्पण, ज़रूरी है तरल होना। सब कुछ कर लो सरल, स्वयं को, सबसे कठिन सरल होना। कुंठा औ' द्वेष की भावना, अंदर-अंदर खात…
दिव्यांगजन - कविता - नंदिनी लहेजा
तुम जैसे ही हम इंसान हैं, अधूरे हुए तो क्या? हृदय भरा हर भावना से तुम्हारी ही तरह, तन के किसी हिस्से का साथ छूटा तो क्या? कोई कहे हमको…
ख़ुद को सबसे ख़ास कर लो - कविता - नृपेंद्र शर्मा "सागर"
मौत से पहले मरो मत, ख़ुद को सबसे ख़ास कर लो। ज़िंदगी बे-रंग करो मत। साँस में हर आस भर लो, काम मुश्किल कुछ नहीं है, ये परीक्षा की घड़ी है। …
शिक्षित बे-रोज़गारी की समस्या - निबंध - संस्कृती शाबा गावकर
बे-रोज़गार उस व्यक्ति को कहा जाता है जो बाज़ार में या समाज में प्रचलित मज़दूर दर पर कार्य करना चाहता है, लेकिन उसे काम नहीं मिल पाता। बे-…
छवि (भाग १) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१) अदृश्य चेतना की छवि तुम, दिव्य-प्रभा से हो भरी। आवेगी और विवेकी हो, ज्ञानमयी शिवसुंदरी।। तुझसे है स्पंदित यह जीवन, स्पंदित यह संसा…
जीवन के जो पल मिले - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जीत हार सुख आपदा, जीवन की है रीत। जीवन के जो पल मिले, रचो उसे नवनीत।। काल चक्र विधिलेख से, परिचालित संसार। उत्तम पथ यायावरित, चलो धर्म…
हे प्रभु अब तो दया दिखाओ - कविता - भानु प्रताप सिंह तोमर
कैसा खेल प्रकृति ने खेला, थम सा गया दुनिया का मेला। हर एक मन में बस अब डर है, अब तो हवाओं में भी ज़हर है। अब हर जन को डरते देखा, त्राह…
याद आती है उन पलों की - कविता - मनोज बाथरे
आज के समय में उन पलों की याद बहुत आती है, जो पल हमारे जीवन में आके हमसे बहुत दूर चलें गए हैं। आज हम चाहकर भी उन पलों को सिर्फ़ याद…
बहुत नादान फिरते इस शहर में - ग़ज़ल - श्रवण निर्वाण
अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन तक़ती : 1222 1222 122 बहुत नादान फिरते इस शहर में, यहाँ वो मौक़ा खोजे हर क़हर में। रहें घर पर, न कोई हादस…
पराग - कविता - रूचिका राय
फूलों पर मँडराते भौंरे, बग़िया बग़िया जाते हैं। बैठ फूल पर पराग सदा वो लेकर उड़ जाते हैं। नहीं मतलब फूलों से उन्हें, पराग ही उनको पाना …
पुदीना की पहचान - कविता - गोलेन्द्र पटेल
दुख की दुपहरिया में मुर्झाया मोथा देख रहा है, मेंड़ की ओर मकोय पककर गिर रही है नीचे; (जैसे थककर गिर रहे हैं लोग तपती सड़क पर...) और हाँ,…
शिक्षक - कविता - प्रद्युम्न अरोठिया
वो प्रज्वलित दीप-सा मिटाने अंधकार मीलों की गहराई में भी आशा का प्रकाश बना है, भूले जो अनजाने पथ पर खींच उनको जीवन पथ पर कल की उम्मीद क…
पथ मेरा गुरुजन सरल करें - बाल कविता - भगवत पटेल
उपदेशों से मन होता भारी, सूक्ति वाक्य में समझ परे है। पुस्तक बोझ समझ कर ढोता, विद्यालय से हर रोज़ डरे है। कुछ ऐसा कर दो मेरे गुरुवर, म…