संदेश
प्रेम - सवैया छंद - सुशील कुमार
प्रेम न होत जो भ्रात को भ्रात से तौ पद त्राण न राज चलाते। प्रेम न होत जो भक्त से ईश को तौ शबरी फल जूठ न खाते॥ प्रेम न होत जो राम को सी…
जीवन क्या है - कविता - रूशदा नाज़
माँ घर की ज़िम्मेदारियाँ निभाती देर रात वह थक कर सोती तब समझ आया जीवन क्या है पिता घर से दूर रहता, या सुबह जाता शाम आता उसके संघर्षों …
प्रेम - कविता - रोहित सैनी
प्रेम! धूप है हमारे चेहरे की... सितारों की जग-मगाहट, जिसमें... सब कुछ सुंदर दिखता है शीतल, शांत, मद्धम रौशनी है चाँद की। प्रेम... हमार…
चौबीस शुभ संदेश ध्येय हो - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
करें विदाई तेइस अतीत, जी 20 भारत कीर्ति गढ़ा हो। स्वागत है नववर्ष तुम्हारा, सुखद प्रगति उल्लास नया हो। सुख नया साल परिपेक्ष्य नए, हो न…
नव वर्ष की पावन वेला - कविता - अजय कुमार 'अजेय'
नव वर्ष की पावन वेला, शुभ संदेश सुनाती है। भगा तम अंतर्मन से, नव प्रभाती गाती है। उदित शिशिर लालिमा, धुँध परत हटाती है। किंतु ठिठुरन-क…
नव वर्ष का स्वागत - कविता - मयंक द्विवेदी
सुधी मन के दृष्टि पटल पर, उभरती चलचित्र सी रेखा। स्मृति साकेत में सँजोती, सहेजे विगत वर्ष की लेखा। विसर्जित वर्ष हो पुरातन, दहलीज़ पर न…
नवल वर्ष का नव प्रभात - गीत - उमेश यादव
समय ले रहा अंगड़ाई, नव सृजन हेतु जुट जाना है। नवल वर्ष के नव प्रभात में, जगना और जगाना है॥ दिव्य चेतना आतुर हैं, अनुदान प्रचुर बरसाने …
गए साल का सलाम - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
गए साल का सलाम नए साल का सलाम जिसने मेरे दिल को तोड़ा जिसने मुझसे मुँह को मोड़ा जिसने मुझको तन्हा छोड़ा जिसने मेरा साथ न छोड़ा हर साहब…
नव वर्ष प्रण - कविता - राजेश 'राज'
आने वाले पलों का इंतज़ार भी है, पर गुज़रे हुए पल भी याद आते हैं कभी-कभी। पल-पल को हम क्यों गिनें इस तरह, यह तो पानी की तरह बह जाते हैं स…
नव वर्ष पर शुभकामनाएँ - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
नव वर्ष पर शुभकामनाएँ आपको शत-शत नमन। लक्ष्य पथ मिलना सुनिश्चित दु:ख का होगा शमन। दीप मालाएँ जलेंगी सम्पत्ति सुख का आगमन। ईश मेरी प्रा…
मुझको जग में आने दो माँ - कविता - अजय कुमार 'अजेय'
मुझको जग में आने दो माँ, यूँ मत मुझको जाने दो माँ। सदा तुझे आभार कहूँगी, माँ तुझसे मैं प्यार करूँगी। माँ तेरी हूँ मैं लाड़ो प्यारी, बन…
तुलसीदास सच-सच बतलाना! - कविता - राघवेंद्र सिंह
हे कवि शिरोमणि तुलसीदास! हे राम चरित के सृजनकार! कर जोड़ विनय करता तुमसे, जिज्ञासु मन लिए प्रश्नहार। लिख रघुवर का वह बाल्यकाल, जब लिखा…
मुस्कान से भरी - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
खेत में फ़सल है मुस्कान से भरी। ख़्यालों के क़ाफ़िले हैं रुके हुए। बरगद के कंधे लगता झुके हुए॥ फ़सलों की साड़ी लगती हरी-हरी। नन्हे-नन्हे हा…
नव वर्ष मंगलमय हो - कविता - प्रवीन 'पथिक'
प्रेमियों के आहत को, हर दिलों के चाहत को। नव वर्ष मंगलमय हो!! खेतों में किसानों को, सीमा पे जवानों को। दिल के दिलदार को, और सभी दीवानो…
ख़ुद से मुलाक़ात - नवगीत - सुशील शर्मा
ख़ुद से मुलाक़ात चलो करें आज। अकेले-अकेले बहुत दिन बीते। रिश्तों के बस्ते कुछ भरे रीते। चलो आज गाएँ वासंती साज। गाँवों के पनघट सब लगें स…
परिवार की क़ीमत - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
हैं कपड़े मेरे पास नहीं, पर सर्दी पास नहीं आती। मेरा परिवार बहुत प्यारा, वो प्यार देखकर भग जाती। मैं नन्हा बच्चा मम्मी का, ख़ुद अपने का…
अप्प दीपो भवः - कविता - संजय राजभर 'समित'
छोटी सी है ज़िंदगी सूझबूझ से चल बेतहाशा मत भाग किसी के पीछे पता चला वो अँधेरे में था तू भी– धार्मिक सच जो कल तक सच था उसे विज्ञान आज झू…
नर से नारायण - कविता - मयंक द्विवेदी
मानव और भगवन के, द्वन्द में जब मन घिर आता है। पौरुष और पुरुषार्थ पर जब विस्मय हो जाता है। पुरुष और पुरुषोत्तम में, जब प्रश्नचिन्ह लग ज…
वे बच्चे - कविता - सोनू यादव
वे बच्चे जिन्हें मैं दूर से ही देख रहा हूँ एक टक अपनी झिलमिलाती आँखों से, अपने ही घर के सामने बाग़ के एक पेड़ की टहनियों पर चढ़ते औ’ फ…
बातों-बातों में - कविता - प्रवीन 'पथिक'
बात भी क्या है! कुत्ते की टेढ़ी पूँछ। या कहूँ कि कुंडली मारे किसी सर्प का दंश। जिसका विष शरीर में नहीं; अंतः में फैलता है। और वह व्यक्…
मंज़िल पर हूँ - नज़्म - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
मंज़िल पर हूँ, पैरो को अब और चलने की ज़रूरत ना रही, दिल में इस तरह से बसे हो कि मन्दिर में तेरी मूरत ना रही। फ़लक़, पंछी, ये ख़ामोश कहकशाँ,…
ग़लतियों को समझ पाना - गीत - उमेश यादव
सुधरने को मन मचलना, साहस कहलात है। ग़लतियों को समझ पाना, हौसले की बात है॥ ग़लतियों से सीख लेना, श्रेष्ठतम सदज्ञान है। ग़लतियों से हारते…
याद आते हो तुम - गीत - सूरज 'उजाला'
याद आते हो तुम, याद आते हो तुम जब कभी आँख से दूर जाते हो तुम व्हाट्सएप पे वो एसएमएस जो देखा सबा कुछ तो लिखते हो और फिर मिटाते हो तुम म…
बेटी - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया
बेटी युग के नए दौर में, भूमिका निज निभा रहीं हैं। छूकर बुलंदियों की ऊँचाई, मान-सम्मान सब पा रहीं हैं। ज्ञान-विज्ञान प्रौद्योगिकी सहित,…
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