प्रेम न होत जो भ्रात को भ्रात से तौ पद त्राण न राज चलाते।
प्रेम न होत जो भक्त से ईश को तौ शबरी फल जूठ न खाते॥
प्रेम न होत जो राम को सीय से तौ नहि सिंधु पे सेतु बधाते।
प्रेम न होत जो दास सुशील से तौ कविता नहिं गाय सुनाते॥
प्रेम न होत जो ब्रह्म को जीव से तौ धरि कै नर रूप न आते।
प्रेम न होत जो धर्म से तौ मुरलीधर भी नहिं चक्र उठाते॥
प्रेम न होत जो मीरा से श्याम को तौ बिष को न पियूष बनाते।
प्रेम न होत जो मातु पिता सन तौ तुमहू यह देह न पाते॥