हे कवि शिरोमणि तुलसीदास!
हे राम चरित के सृजनकार!
कर जोड़ विनय करता तुमसे,
जिज्ञासु मन लिए प्रश्नहार।
लिख रघुवर का वह बाल्यकाल,
जब लिखा राम का वन जाना।
वह कलम रुकी थी क्यों क्षणभर?
कैसा विचलन था घबराना?
तुलसीदास सच-सच बतलाना!
अवधपति वो पुत्र मोह में,
स्वयं रोए या तुम रोए थे?
तुलसीदास सच-सच बतलाना!
कथा लिखी आगे रघुवर की,
नगर अयोध्या सब जग छोड़ा।
स्वयं सूर्य ने छोड़ रश्मियाँ,
वन-पथ पर निज पग को मोड़ा।
सिय-रघुवर संग स्वयं शेष वे,
वन को सब प्रस्थान किए थे।
किंतु अकेली करुण कली ने,
त्याग समर्पण अश्रु पिए थे।
तुलसीदास सच-सच बतलाना!
स्वयं उर्मिला प्रेम मोह में,
स्वयं रोई या तुम रोए थे?
तुलसीदास सच-सच बतलाना!
आगे कथा लिखी रघुवर की,
रघुकुल रीति लिखी मर्यादा।
केवट मिलन, पार कर गंगा,
लिखी कंटकों की बाधा।
निज ममता का सत्य जानकर,
कोई भटका खोज रहा है।
भ्रात मिले तो नयन मिले न,
एक अकेला सोच रहा है।
तुलसीदास सच-सच बतलाना!
व्याकुल होकर भ्रात प्रेम में,
रोए भरत या तुम रोए थे?
तुलसीदास सच-सच बतलाना!
लिखी कथा तुमने वन पथ की,
सरल हृदय विक्षोह लिखा था।
कुटिल भ्राँति और महाजाल वह,
स्वर्णिम मृग का मोह लिखा था।
लिखा दशानन का छल तुमने,
कलम रुकी थी क्या क्षणभर?
ऐसी करुण दशा माता की,
कैसे लिखी व्यथा थर-थर?
तुलसीदास सच-सच बतलाना!
पति वियोग में जनकनंदिनी,
स्वयं रोई या तुम रोए थे?
तुलसीदास सच-सच बतलाना!
आगे कथा लिखी रघुवर की,
लिखी मित्रता कुल वानर की।
अंगद, हनुमत, रीक्ष लिखा सब,
किष्किंधा सुग्रीव प्रखर भी।
लिखी जली वह स्वर्णिम लंका,
रावण कुल संहार लिखा।
प्रेम, सत्य की विजय लिखी वह,
रावण का उद्धार लिखा।
तुलसीदास सच-सच बतलाना!
मर्यादित श्री राम मोह में,
कलम रोई या तुम रोए थे।
तुलसीदास सच-सच बतलाना!