नव वर्ष प्रण - कविता - राजेश 'राज'

नव वर्ष प्रण - कविता - राजेश 'राज' | Nav Varsh Kavita - Pran | Hindi Poem On New Year Commitment. नया साल प्रण पर कविता
आने वाले पलों का इंतज़ार भी है,
पर गुज़रे हुए पल भी याद आते हैं कभी-कभी।
पल-पल को हम क्यों गिनें इस तरह,
यह तो पानी की तरह बह जाते हैं सभी।

ना हो हैरान और ना हो परेशान,
लोग मिलते हैं तो बिछड़ते हैं कभी।
खोल दो खिड़कियाँ और निहारो आसमान,
खुली हवा में राग घुले हैं सभी।

ज़िंदगी में क्या मिला और क्या छूट गया,
सब भूल जाओ और लाओ बस होठों पर हँसी।
लम्हा-लम्हा हँस कर जीने की कोशिश हो,
क्योंकि रोकर भी ना मिल पाए कुछ कभी।

हसरतें, उम्मीदें, सपने सीमित रहें,
ज़िंदगी से समझौते करें हम सभी।
हम खोए-खोए हैं कोई हमसे रूठा है,
इन बातों के भी सचमुच मायने होते हैं कभी।

अब कुछ अलग सा दौर है नया कलरव है,
भीड़ चारों तरफ़ है पर अकेले हैं सभी।
सब कुछ पास में है पर दूर तक नहीं सुकून,
प्रण नव वर्ष में हो कि थामेंगे मानवता का हाथ सभी।

राजेश 'राज' - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)

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