मंज़िल पर हूँ - नज़्म - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'

मंज़िल पर हूँ - नज़्म - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज' | Nazm - Manzil Par Hoon | वक़्त पर नज़्म, Hindi Poetry On Destination
मंज़िल पर हूँ, पैरो को अब और चलने की ज़रूरत ना रही,
दिल में इस तरह से बसे हो कि मन्दिर में तेरी मूरत ना रही।
फ़लक़, पंछी, ये ख़ामोश कहकशाँ, सब मुझको सदा देते हैं,
ज़र्रे-ज़र्रे में बस तू ही है, तू ना दिखे ऐसी कोई सूरत ना रही।
ख़ता तो बहुत की मैंने, और शिकायतों का भी है क्या हिसाब,
फिर भी बरसी है रहमत इस क़द्र, दिल में कोई कुदूरत ना रही।
तू ही रहा बाक़ी मुझमें, हो जुदा ऐसी तेरी भी आरज़ू तो नहीं,
किससे कहूँ ऐ रहबर मेरे! सुनलें मेरी अब वो हुज़ूरत ना रही।
ज़िंदगी बसर की, 'सुराज' तूने मुराद-ओ-मुक़द्दर की तलाश में,
तिरे नूर-ए-जमाल से उतरी बेख़ुदी, अब ज़िंदगी बे-नूरत ना रही।

सुनील खेड़ीवाल 'सुराज' - चुरू (राजस्थान)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos