परिवार की क़ीमत - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला

परिवार की क़ीमत - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला | Hindi Kavita - Parivaar Ki Qimat - परिवार पर कविता। Hindi Poem On Family
हैं कपड़े मेरे पास नहीं,
पर सर्दी पास नहीं आती।
मेरा परिवार बहुत प्यारा, 
वो प्यार देखकर भग जाती।
मैं नन्हा बच्चा मम्मी का,
ख़ुद अपने काम न कर पाता।
हूँ माँ के आँचल से चिपका,
पर भोजन पानी सब पाता।
परिवार की क़ीमत बहुत बड़ी,
जिसका ना मोल है दुनिया में।
परिवार न टूटे ध्यान रखो,
इसका ना तोल है दुनिया में।
है सत्यप्रेम का अटल पुंज,
परिवार जिसे हम कहते हैं।
बस एक दूजे की ख़ातिर ही,
सब लोग जहाँ पर रहते हैं।
जब कोई आफ़त आती है,
परिवार ही आगे आता है।
यदि कोई मुसीबत छाती है,
परिवार ही साथ निभाता है।
अपनेपन की बाते करते,
तो लोग बहुत मिल जाते हैं।
पर कोई ज़रूरत पड़ती है,
तब अपना मुँह वो छिपाते हैं।
परिवार किसी का ना टूटे,
ये सबसे बड़ी नियामत है।
अपने तो अपने होते हैं,
ये सच्ची एक कहावत है।
         

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