हे हिन्द की धरोहर! - कविता - राघवेंद्र सिंह | पण्डित जवाहरलाल नेहरू पर कविता

हे रत्न! भूमि भारत,
हे हिन्द की धरोहर!
हे हिन्द स्वप्नदृष्टा!
हे हिन्द के जवाहर!

सच्चे सपूत तुम थे,
इस हिन्द वाटिका के।
तुम ही यहाँ थे रक्षक,
उस पुष्प वाटिका के।

तुमने ही बालपन से,
उस बाल मन को जाना।
हैं ये भविष्य आशा,
तुमने हृदय से माना।

कर जन्मदिन समर्पित,
तुमने लगाई मोहर।
करता नमन तुम्हें जग,
हे हिन्द की धरोहर!

बच्चों की तुम सुबह थे,
और हँसने का बहाना।
बच्चों के रूठने पर,
आता तुम्हें मनाना।

बच्चों के प्यारे चाचा,
बच्चों की स्वीकृति थे।
ख़ुशियों के रूप में तुम,
बच्चों की ही प्रति थे।

तुम शांति के पुरोधा,
तुम ख़ुशियों के सरोवर।
करता नमन तुम्हें जग,
हे हिन्द की धरोहर!

था प्रिय गुलाब तुमको,
और प्रिय सदा से बच्चे।
रखते थे पास इनको,
जो थे वो मन के सच्चे।

बच्चों के प्रति समर्पित,
तुम प्रेम से हँसाते।
बच्चों के बीच बच्चे,
बन तुम भी खिलखिलाते।

तुम प्रेरणा बने थे,
बन पुष्प वह गुलमोहर।
करता नमन तुम्हें जग,
हे हिन्द की धरोहर!

जब देखी बाल आहट,
तुमने ही नित कहा था।
बच्चे भविष्य भारत,
जन-जन ही सुन रहा था।

इनमें प्रताप राणा,
हैं नन्द ये विवेका।
हैं बाल रूप भगवन,
इनमें सदा ही देखा।

जो मन प्रसन्नता दें,
हैं ये छवि मनोहर।
करता नमन तुम्हें जग,
हे हिन्द की धरोहर!

जब जब दिवस वो न्यारा,
वो दिवस बाल आया।
बच्चों की छवि में हमने,
तुम जैसा लाल पाया।

तुम कल्पनाओं को ही,
देते उड़ान नित ही।
तुम ही महक सुगंधित,
देते सदा से चित ही।

तुम रत्न हो सुशोभित,
तुम बाल मन मनोहर।
करता नमन तुम्हें जग,
हे हिन्द की धरोहर!

राघवेन्द्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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