ख़ुद से मुलाक़ात
चलो करें आज।
अकेले-अकेले
बहुत दिन बीते।
रिश्तों के बस्ते
कुछ भरे रीते।
चलो आज गाएँ
वासंती साज।
गाँवों के पनघट
सब लगें सूने।
शहरों के मुखड़े
दर्द से दूने।
आँखों में गहरे
छुपे हुए राज़।
अंदर तक पैठे
धुँआ और धूल।
मन के उपवन में
शूल संग फूल।
जीवन बीहड़ में
उड़ता मन बाज।
सुशील शर्मा - नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)