खेत में फ़सल है
मुस्कान से भरी।
ख़्यालों के क़ाफ़िले
हैं रुके हुए।
बरगद के कंधे
लगता झुके हुए॥
फ़सलों की साड़ी
लगती हरी-हरी।
नन्हे-नन्हे हाँथों सी
लगीं बालियांँ।
लदीं फूल-पत्तों से
सभी डालियाँ॥
महुवा है कहता
बातें खरी-खरी।
जीवन में कभी धूप
कभी छाँव है।
मगर होते नही
झूठ के पाँव है॥
आँगन में चिड़िया
जैसे डरी-डरी।