मुस्कान से भरी - नवगीत - अविनाश ब्यौहार

मुस्कान से भरी - नवगीत - अविनाश ब्यौहार | Navgeet - Muskaan Se Bhari - Avinash Beohar
खेत में फ़सल है
मुस्कान से भरी।

ख़्यालों के क़ाफ़िले
हैं रुके हुए।
बरगद के कंधे
लगता झुके हुए॥

फ़सलों की साड़ी
लगती हरी-हरी।

नन्हे-नन्हे हाँथों सी
लगीं बालियांँ।
लदीं फूल-पत्तों से
सभी डालियाँ॥

महुवा है कहता
बातें खरी-खरी।

जीवन में कभी धूप
कभी छाँव है।
मगर होते नही
झूठ के पाँव है॥

आँगन में चिड़िया
जैसे डरी-डरी।


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