वे बच्चे - कविता - सोनू यादव

वे बच्चे
जिन्हें मैं दूर से ही
देख रहा हूँ
एक टक
अपनी झिलमिलाती आँखों से,
अपने ही घर के सामने 
बाग़ के एक पेड़ की टहनियों पर
चढ़ते औ’ फिर कूदते,
ख़ुशी-ख़ुशी 

वे काट देंगे,
एक दिन,
इसकी टहनियों को 
एक-एक करके
और फिर उसे भी, 
और बना लेंगे एक नया मकान 
वहीं पर 

फिर कहीं किसी मोड़ पर,
ठीक मेरी तरह,
ख़ामोश खड़े होकर देख पाएँगे,
किसी नए जन्मे बच्चे को 
किसी पेड़ की टहनियों के साथ
उछलते कूदते,
ठीक उसी तरह।


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