संदेश
चेतक - कविता - अमित तिवारी 'बेचन'
नाम था उसका चेतक, था वो बड़ा मतवाला। घोड़ों में कहते उसे, महाराणा का भाला॥ हवा से अक्सर बातें करता, जैसे हो तुफ़ानी। पल में महारा…
समुद्र मंथन - कविता - पायल मीना
देव और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन रचाया था, क्षीरसागर के मध्य में मंदरांचल पर्वत को लाया था। वासुकी नाग को बनाकर जेवरी शुभारंभ मंथन …
तू तो मैं में, मैं में तू तू - कविता - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
जब से तेरी लगन लगी है कुछ भी और नहीं भाता। भाना तो अब दूर जगत से टूट गया झूठा नाता॥ रोम-रोम में हुलक मारती पुलक न जाने क्या कर दे। …
एक अज्ञात चिंता - कविता - प्रवीन 'पथिक'
जब भी तुम्हे ढूॅंढ़ने की कोशिश करता हूॅं! भूल जाता हूॅं, ख़ुद में ही। एक अज्ञात चिंता, मन पर हावी होने लगती। इस संसार से, दूर जाना चाह…
ये मौन अधर की बातें - गीत - सिद्धार्थ गोरखपुरी
ये मौन अधर की बातें, केवल नैना कह पाते हैं। नैना सब कुछ सुन लेते हैं, मुख पर चैना रह जाते हैं। ख़्वाब सुहावन पावन होकर, अरज के साथ प्रव…
माँ की याद - कविता - मेहा अनमोल दुबे
नियम, जपतप में लगे हुए, दिव्य शांत स्वरूपा, मेहा बन फुलों पर सो गई या मौन में सदा के लिए तल्लीन हो गई, दृष्टिकोण में तो सब जगह हो गई…
ऋतुओं की रानी वर्षा ऋतु - कविता - राघवेंद्र सिंह
मेघ चले हैं बनकर वाहक, वसुधा प्यास बुझाने को। मृदुल स्वप्न ने दिया निमंत्रण, वर्षा ऋतु के आने को। हरी भरी वह संध्या कहती, आने वाली नई …
नया आँचल नई मुस्कान - कविता - विजय कुमार सिन्हा
कलाइयों में भरी हुई चूड़ियाँ पाँवों में पाज़ेब ललाट पर बड़ी सी बिंदिया माँग में सिंदूर बदन पे भरे हुए आभूषण माँ-पापा के द्वारा पसंद…
कर्मों का फल - कविता - डॉ॰ कंचन जैन 'स्वर्णा'
समंदर सी गहराई लेकर, चल मन में। मगर समंदर सा खारापन नहीं। चला क़लम बेशक रफ़्तार से, मगर ठहर, हर शब्द को पढ़। बड़ा क़दम तेज़ी से हरेक,…
मेरे सपने लौटा दो - कविता - रूशदा नाज़
वो बचपन था ढेरों सपने सजाए थे इन आँखों ने साकार करेंगें एक दिन, हम होगें कामयाब एक दिन हर्षोल्लास के संग गाते थे गीत वक़्त के साथ साथ ह…
तुझे क्या कहूँ? - कविता - मुस्ताक अली
तू ही बता तुझे क्या कहूँ? गुलशन की बहार कहूँ ख़ुशियों का संसार कहूँ ज़िंदगी का सार कहूँ या मेरे दिल में बसा बेपनाह प्यार कहूँ? तू ही बता…
हम हैं छोटे-छोटे बच्चे - कविता - राहुल भारद्वाज
हम हैं छोटे-छोटे बच्चे, त्यौहार हमें लगते हैं अच्छे। स्कूल में पड़ जाते हैं अवकाश, दिन होते हैं वो कितने ख़ास॥ पढ़ने की कोई चिंता नहीं,…
बरसो बदरा धरती प्यासी - कविता - अनूप अंबर
बरसो बदरा धरती प्यासी, देख कृषक की ज़रा उदासी। सब मंगलमय हो जाएगा, यदि गर्ज-गर्ज के तू गाएगा। अम्बर कृषक निहार रहा है, तुम्हें बारंबार …
मस्ताने मौसम ने - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मस्ताने मौसम ने पागल मुझे कर दिया, दीवाने मौसम ने घायल मुझे कर दिया। भीगा सावन बहकने लगा, गीला बदन क्यूँ दहकने लगा। दिल धक धक धक धड़कने…
शिव ही सत्य है - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
दुनियाँ शिव ही सत्य है, महिमा अपरंपार। अन्तर्मन विश्वास से, हों प्रसन्न ओंकार॥ सदा अजन्मा चिरन्तन, बाघम्बर वागीश। भक्ति प्रेममय शिव…
नदी की व्यथा - कविता - हनुमान प्रसाद वैष्णव 'अनाड़ी'
शैलसुता में सरिता सुन्दर नागिन सी लहराती हूँ। दरिया खेत गॉंव वन सबको मैं जल पान कराती हूँ॥ मेरा जन्म पहाड़ों से, मैं मैदानों में आती …
वह ज़िंदा होगा - कविता - आनन्द कुमार 'आनन्दम्'
भला कैसे कोई समझें मेरे किरदार को जब हो रही हो इम्तिहान प्यार की वह बेज़ुबान बेगुनाह था भरी महफ़िल में जिसे स्वीकार था वह ज़िंदा होगा य…
रात में सूरज - कविता - कर्मवीर सिरोवा 'क्रश'
मरुस्थल की रात का लिहाफ़ हैं, उस पे शीतलता का पर्याय गुदड़ा भी बदन के नीचे साफ़ हैं, वो सामने, आँखों की सम्त पेशानी पर बल्ब जल रहा है, च…
आओ चलें गाँव की ओर - कविता - प्रिती दूबे
छोड़ के इन शहरों की शोर, आओ चले गाँव की ओर। कितना प्यारा अपना गाँव, कितना न्यारा अपना गाँव। जहाँ अपनापन है रचा, बसा, जहाँ कभी रोया कभी…
जीवन एक संघर्ष है - कविता - उमेन्द्र निराला
जीवन एक संघर्ष है और हम पथिक है उसके, राहें सरल नहीं है बाधाएँ हर पग है तो इससे डरना क्या? मुझे गिराने की चाहत में गिर रहें हैं ख़ुद, म…
एक सुबह होने दो मेरी स्मृति में - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
एक सुबह होने दो मेरी स्मृति में उगने दो रक्तिम आभा की तरह एक सुरज मेरे स्मृति के बंजर में मेरा सीना अनुपजाऊ ज़मीन है कट चुका जंगल, मरुस…
भौतिकवाद, प्रकृतिवाद और हमारी महत्वाकांक्षाएँ - लेख - श्याम नन्दन पाण्डेय
सुदूर गाँव और जंगलों मे बैठा कोई बुज़ुर्ग व्यक्ति और उसका परिवार जो खेती बाड़ी करता है, गाय, भैंस और बकरियाँ चराता है, हाथ मे स्मार्ट फ़ो…
चले चलो, बढ़े चलो - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा
चले चलो, बढ़े चलो लड़ो कि बिना लड़े हक़ नहीं मिलता। उठो कि बिना चले मंज़िल नहीं मिलती। माँगों कि बिना माँगे कुछ नहीं मिलता। जागो कि बिना जा…
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