संदेश
मातृभूमि - कविता - योगेंद्र पांडेय
फिर से ग़ुलामी की न, बेड़ियों में बाँध सके, भारत माँ पूर्ण, स्वाभिमान माँग रही है। सबके ज़बान पर, अंकित हो इतिहास, जन गण मन वाली, गान म…
प्रकृति का प्रेम - कविता - राजेन्द्र कुमार मंडल
तिमिर फैले धरा पर जहाँ-जहाँ, स्नेह लौ से दीप जलाए जाते। खिलखिलाते यह धरा चहुँओर, प्रेम पुष्प के पौधे लगाए जाते। करुणा की इत्र महकते धर…
रिमझिम सावन आया है - ताटंक छंद - संजय राजभर 'समित'
विरह वेदना की ज्वाला में, तन-मन ख़ूब तपाया है। आओ मेरे प्रियतम प्यारे, रिमझिम सावन आया है। प्यासी घटा की मर्म समझो, गीत ख़ुशी के गाएँगे।…
मेरा देवता मौन है कई दिनों से - कविता - डॉ॰ नेत्रपाल मलिक
हे मन्दिर के पुजारी! नाराज़ तो हुए होंगे मुझसे कि नैवेद्य के समय चित में अर्पण नहीं था। हे सरसों, गुलाब, नर्गिस और डेज़ी के फूल! नाराज़ त…
बादल आओ - कविता - राजेश 'राज'
वर्षा की जलधार लिए वारि कणों की फुहार लिए श्यामल बादल आ जाओ अपना प्रेम उड़ेलो सब पर सब में जीवन भर जाओ श्यामल बादल आ जाओ। वृक्षों की त…
प्रेम - कविता - मुकेश वैष्णव
प्रेम में आश्वाशन मरणासन सी स्तिथि है, मेरी तरह न जाने कितनों की आपबीति है। आँखें मूँद के हर बार हिमाक़त कर लेना, समाज में बाल विवाह के…
देखो-देखो सावन है आया - कविता - सुनील कुमार महला
झम-झम बरसे मेघ, तरूओं के भीगे तन, भीगे हरेक आज मन देखो-देखो सावन है आया! चम-चम चमके बिजलियाँ, झूम रहे तन और झूम रही सारी वनस्पतियाँ दे…
रामत्व - कविता - महेश कुमार हरियाणवी
कर्म: पावन नाम को पावन गाएँ, मिल-मिल कर सब ही दोहराएँ। कर्मों की जग करता पूजा, राम नाम हैं जीवन दूजा॥ प्रण: साथ के संगी छूट न जाएँ, …
देख सजनी देख ऊपर - गीत - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
देख सजनी देख ऊपर। इंजनों सी दड़दड़ाती, बम सरीखी गड़गड़ाती। रेल जैसी धड़धड़ाती, फुलझड़ी सी तड़तड़ाती॥ पल्लवों को खड़खड़ाती, पंछियों को …
तू लाजवाब है तो मैं भी लाजवाब हूँ - ग़ज़ल - भाऊराव महंत
अरकान : मफ़ऊलु फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन तक़ती : 221 2121 1221 212 तू लाजवाब है तो मैं भी लाजवाब हूँ, तुझमें शबाब है तो मैं आला-शबाब हूँ…
ज़रा सा क़यास लगा - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
देवशयनी एकादशी है चातुर्मास लगा। मंगल कार्य नहीं हो सकते। पर्यंक पे नहीं सो सकते॥ बेगैरत उनने माना हमको ख़ास लगा। अधिकारी की बल्ले-बल्ल…
परम्परागत और वैज्ञानिक कृषि जल संकट और जीवनशैली - लेख - श्याम नन्दन पाण्डेय
भारत ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में बढ़ती हुई जनसंख्या और और कृषि योग्य भूमि की कमी से खाद्य संकट संभावना बढ़ रही है और इसकी आपूर्ति के ल…
दिवा स्वप्न - कविता - प्रवीन 'पथिक'
एक; किसी पिंजरे में कैद पक्षी की तरह, फड़फड़ाता है। उसके निकलने के अपेक्षा, मौत का आलिंगन प्यारा लगता है। रात के सन्नाटे पर अंधेरा हॅं…
बचपन - कविता - ऋचा तिवारी
मन माधव सा दौड़ा करता, ये चंचल सा बचपन प्यारा। तारो को मुट्ठी में भर लूँ, और तिमिर मिटे जग का सारा। जिज्ञासु मन भोला बचपन, निस्पाप…
बारिश - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
रिमझिम-रिमझिम बारिश की बुँदे आकाश लोक से आई है, धरा भी इनका प्रथम स्पर्श पाकर लगता है कुछ-कुछ शर्माई है। फूलो और पत्तों पर टप-टप लागे …
आ भी जाओ श्याम - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
तुम बिन रहा न जाए अब, आ भी जाओ श्याम। तरस रही मुरली श्रवण, मैं राधे प्रिय वाम॥ तुम साजन माधव मदन, मैं राधे रति श्याम। केशव की कुसुम…
अब हम शहर में हैं - कविता - रमाकान्त चौधरी
होते थे सौ मन गेंहूँ सौ मन धान तमाम दलहन तिलहन बड़ा सुकून था गाँव में। गाँव का बड़ा खेत बेचकर एक छोटा प्लॉट ख़रीदा शहर में अब हम शहर म…
हामर पेटेक आइगीं - खोरठा कविता - विनय तिवारी
हामर पेटेक आइगीं पोइड़ के बानी-छाय होय जाय हामर हिंछा, हामर बुधि हामर उलगुलान, हामर सोच हामर पेट आर माड़-भात। एकर बिचें हाड़तोड़वा काम ज…
नहीं रोया कभी पशु - कविता - डॉ॰ नेत्रपाल मलिक
नहीं रोया कभी पशु उसने नहीं किसी का विश्वास तोड़ा नहीं कभी वो झूठ बोला नहीं किसी को धोखा दिया नहीं कभी विद्रोह किया कर दिया अपना जीवन…
आवश्यकता है लड़ने की - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा
आवश्यकता है लड़ने की– चीथड़ा पहनाने वालों से, पेट और पीठ को एक करने वाली तोन्दों से, एक ही कमरे में गृहस्थी बसवाने वालों से, ग़लत पाठ पढ़ा…
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