बचपन - कविता - ऋचा तिवारी

मन माधव सा दौड़ा करता,
ये चंचल सा बचपन प्यारा। 
तारो को मुट्ठी में भर लूँ, 
और तिमिर मिटे जग का सारा। 

जिज्ञासु मन भोला बचपन, 
निस्पाप भरा है जीवन पथ। 
ना कटुता है, ना कुंठा है, 
मन में बसता है भोलापन। 

ये चाँद है क्यूँ नभ में बैठा, 
हर दिन घटता, हर दिन बढ़ता। 
माँ इसको नीचे ले आओ, 
ये चाँद है माँ, किसका टुकड़ा?

कभी बोले तू नादानी में, 
माँ नानी जैसा है बनना। 
स्कूल नहीं जाना मुझको, 
घर का हर काम मुझे करना। 

तुतलाती भाषा में मुझसे, 
तू पूछे बड़ी-बड़ी बातें। 
विस्मित सा मन मेरा होता, 
तेरी कौतुहलता देखे आँखें। 

छोटी सी है दुनिया तेरी, 
जहाँ प्रेम ही हर परिभाषा है। 
ये बचपन कितना निर्मल है, 
बसती जीवन में आशा है। 

जहाँ मन में कोई बैर नहीं, 
अल्हड़ सी तेरी कहानी है। 
अनमोल है ये बचपन तेरा, 
जहाँ जीवन बहता पानी है। 

ऋचा तिवारी - रायबरेली (उत्तर प्रदेश)

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