बारिश - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'

रिमझिम-रिमझिम बारिश की बुँदे
आकाश लोक से आई है,
धरा भी इनका प्रथम स्पर्श पाकर
लगता है कुछ-कुछ शर्माई है।
फूलो और पत्तों पर टप-टप
लागे प्रकृति ने नई धुन सुनाई है,
बादलों के नगाड़े बिजली की चमक
बरखा रानी ने बरात बुलाई है।
भर गए जब नदी नाले तलाब
बच्चों ने भी काग़ज़ की नौका चलाई है,
इस मनोहर जल हवा का मुक़ाबला
एसी कूलर कहाँ कभी कर पाई है।
खिल गए अब किसान की चेहरे
किसानिन ने भी कजरी सुनाई है,
हरी चूड़ियाँ पहन के खेतों में
कृष्ण राधा सा दौड़ लगाई है।
देख मनोरम प्राकृतिक दृश्य को
'सृजन' ने भी अब लेखनी उठाई है।


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