हामर पेटेक आइगीं - खोरठा कविता - विनय तिवारी

हामर पेटेक आइगीं
पोइड़ के बानी-छाय होय जाय
हामर हिंछा, हामर बुधि
हामर उलगुलान, हामर सोच
हामर पेट आर माड़-भात।
एकर बिचें हाड़तोड़वा काम
जे कामें खुइन डबेइक के
लाल से सादा बइन के
घामेक रूपें चुई के देही ले
बाहिर बोइह जाय।
आर हामर देहिक हाड़ 
चिंता फिकिर के घुंइन से 
फोंकला होय जाय।
हामर जेनी आर गीदर-बुतरुक पेटें 
सूधे नून-भात
आर हामर पेटें एक डुभा मांड़।
हाय रे हामनिक पेट!
आर निझें नायं खोजे 
हामनिक पेटेक लहकल आइग।
निझत किरम...
सूधे मांड़-भातें!
आलू-बइगन, बिलाती के भइरता
आर कांचा मेरचाइ तो
नायँ जुटवे पारों...
कहाँ पाइब बेस बेस तियन 
मास,माँछ, रकम-रकम के सवाद
वाला हेन तेन खाएक-पिएक जिनिस!
मोन माइर के अधबुढ़ा होय गेल ही
घार साँसरेक परेमें
जेनी-गिदरेक मोहें
कोन्हों बोलें नायं पारी 
धुरबाज गुलाक बिरूधें
घार से डेग बडवे नायं पारी
सोसनकारी, अतियाचारिक
फांदा गुलाक काटे 
आब मुहें बोली नायं फेफरिं फूटे हे
आर गोड़ चले नायं जइसन पोलियो मारलहे।
मेंतुक सुनवब सोब 
आपन गीदर-बुतरुक......
आपन गउरबसाली इतिहास
आपन कइहनी
की कइसन हमनिक संगें छल, कपट,परपंच आर कुटिचारी कइर कुन
आइज हमनिक सोब कुछ लुइट कुन
ई सोब राजा भेल हथ।
आर ऊ सोब आपन सुखेक ख़ातिर 
हमनीके नोकर बनाइके राखल हथ।

विनय तिवारी - कतरासगढ़, धनबाद (झारखंड)

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