आवश्यकता है लड़ने की - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा

आवश्यकता है लड़ने की–
चीथड़ा पहनाने वालों से,
पेट और पीठ को एक करने वाली तोन्दों से,
एक ही कमरे में गृहस्थी बसवाने वालों से,
ग़लत पाठ पढ़ाने वालों से,
अशराफ़ों से, कुलीनों से।
आवश्यकता है सजगता की–
अपने अधिकारों को लेकर,
अपने ऊपर हुए अत्याचारों को लेकर,
सरकारी योजनाओं में भागीदारी को लेकर।
आवश्यकता है मुक्त होने की–
दृश्य-अदृश्य शोषण से,
अंधकार से, अंधविश्वास से, अंधभक्ति से,
अशिक्षा से, ग़ुलामी से।
इस आशा के साथ–
खुली हवाओं में जी सकेंगे,
पथ परिचित होंगे,
लक्ष्य निर्धारित होंगे,
सीमाओं से मुक्त होंगे,
दुख-सुख अनुपातिक होंगे।
आवश्यकता है लड़ने की, सजगता की, मुक्ति की।

डॉ॰ अबू होरैरा - हैदराबाद (तेलंगाना)

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