संदेश
संधि की शर्तों पे कायम हो गई है दोस्ती - ग़ज़ल - प्रशान्त 'अरहत'
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती : 2122 2122 2122 212 संधि की शर्तों पे कायम हो गई है दोस्ती, अब नए आयाम गढ़ती जा …
नववर्ष की पावन बेला - कविता - अजय गुप्ता 'अजेय'
नववर्ष की पावन बेला, शुभ संदेश सुनाती है। भगा तम अंतर्मन से, नव प्रभाती गाती है। उदित शिशिर लालिमा, धुँध परत हटाती है। किंतु ठिठुरन-कं…
कृष्णा के पार्थ - कविता - कर्मवीर सिरोवा 'क्रश'
मेरा आशियाँ मुन्तज़िर हैं कि अब तो तिरी आँखें टिमटिमाए, ज़रा आओ, लोग उम्मीद से हैं कब यहॉं बिजली जगमगाए। काग़ज़ को बनाऊँ अब्र और आँखों के …
वर्ष नया यह मंगलमय हो - कविता - देवेश द्विवेदी 'देवेश'
बाधाएँ अब नहीं सताएँ, विपदाएँ भी नहीं डराएँ। हार मिले न, सदा ही जय हो, वर्ष नया यह मंगलमय हो॥ रोज़गार के दिखें न लाले, क़िस्मत के खुल जा…
एक जीवन बीत गया - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
यह वक्त जो बीत गया सिर्फ़ वक्त नहीं था सिर्फ़ एक साल बारह मास या दिन नहीं था एक जीवन था जो बीत गया। आपसी रिश्तों के ताने बाने को यह वक्…
नए वर्ष की शुभकामनाएँ - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
वर्ष दो हज़ार बाइस तुमको स्नेहिल मधुर विदाई। नवल वर्ष मंगलमय हो प्रभु बाजे जीवन शहनाई। विष्णु प्रिया सुख सम्पत्ति लाना घर आओ लेकर अरुणा…
नववर्ष - कविता - प्रवल राणा 'प्रवल'
नववर्ष तुम्हे मंगलमय हो, जीवन भी शुभ मंगलमय हो। ऊर्जा से प्रकाशित नववर्ष रहे, आगामी जीवन में उत्कर्ष रहे। जो संताप आदि इस वर्ष रहे, उन…
नववर्ष - कविता - हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल'
दिन गुज़रे, समय गुज़रा, गुज़र गया फिर एक साल। क्या खोया, क्या पाया, मन पूछे बस यही सवाल। गुज़रा वो मुश्किल दौर भी, फिर से आ रहा नया सवेरा।…
नव प्रभात अब आया है - गीत - डॉ॰ कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव
नई उमंगे सँग में लेकर, नव प्रभात अब आया है। बुरा समय अब बीत गया है, नई किरण इक आई है। चहुँदिश फैल रहा उजियारा, ख़ुशहाली अब छाई है। बनी …
स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष! - कविता - आशीष कुमार
पलकें बिछाए खड़े हम सभी, दिलों में है हमारे अपार हर्ष। शुभ मंगल की कामना संग, स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष! रसधार बहे सर्वदा प्रेम की,…
अच्छे दिन - गीत - सिद्धार्थ गोरखपुरी
आने वाला अब नया साल है, लो बीत गया दिसम्बर है। न उसको मेरी कोई ख़बर, न उसकी मुझको कोई ख़बर है। मौन अधर और खुले नयन, कैसे हो बिन नींद शयन…
दिसम्बर के महीने में - कविता - कर्मवीर सिरोवा 'क्रश'
याद रहेगी सर्द मौसम की ये सरगोशियाँ जो कानों पर छोड़ रही हैं दस्तकें, फिर भी क्यूँ इक सूरज चाँद से मिलकर पिघल जाता हैं दिसम्बर के महीने…
मनोविकार - कविता - मोहित त्रिपाठी
उठता जब शत्रु मनोविकार, फैल भयंकर दावानल-सा। काम, क्रोध, लोभ, मोह से, संचित पुण्यों को झुलसा। मन से उपजा वाणी में उतरा, करता दूषित आचा…
ओ लड़की - कविता - विक्रांत कुमार
बसंत की आहट से मन आह्लादित है अंतर्मन से खोया हूँ तुम्हें ध्यान-मग्न कर रहा हूँ गेहूँ की खेत में गलथल पगडंडियों पर लहलहाते सरसों की…
हे क़लम! तुम्हें है नमन सदा - कविता - राघवेंद्र सिंह
हे क़लम! तुम्हें है नमन सदा, कुछ आज परिश्रम कर जाओ। एक नई प्रेरणा लिखकर तुम, उद्गार हृदय में भर जाओ। हर पंक्ति में नव उद्देश्य सदा, हर …
प्यास - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
ज़िंदगी के रास्ते पर चलते हुए अचानक एक दिन प्रतिरोध आता है विपतियों का पहाड़ टूट पड़ता है ऐसे समय में यह निश्चय कर पाना कि हमारा जीवन वि…
समय धारा प्रवाह बहती नदी है - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
समय धारा प्रवाह बहती हुई अविरल नदी है जिसकी नियति बहना है जो किसी के लिए नहीं ठहरती है। हाँ! विभिन्न कालखंडों में विभाजित, विविध घाटों…
आलिंगन - कविता - शुभा मिश्रा
तुम्हारे आलिंगन में सारी पीड़ाएँ परास्त हो जाती हैं चिर व्याकुल, उद्वेलित आक्रोश, चुप्पी गल कर बह जाता है। कटु यात्राओं से संतप्त मन …
मैं प्रेम गीत कैसे गाऊँ? - कविता - जितेन्द्र शर्मा
मैं प्रेम गीत कैसे गाऊँ? मैं प्रेम गीत कैसे गाऊँ? जब प्रेम दिवानी बाला को, दैत्य कोई फँसाता है, किसी पिता की श्रद्धा को, टुकड़ों में बा…
नया साल फिर आ रहा है - कविता - अनूप अंबर
नया साल फिर आ रहा है, मन को मेरे जला रहा है। दिसंबर फिर से जा रहा है, नया साल फिर आ रहा है। एकाकीपन ह्रदय जला रहा है, दिसंबर भी अब जा …
सजीव ढाँचा, मिट्टी का - कविता - अनुराग शुक्ल 'अद्वैत'
मिट्टी के एक ढाँचे में, सजीव सा जीवन दिखता है जिनके रंग रूप है कई अनोखे, फिर भी लगते हैं सब एक। इसी चेतना का है प्रसार, जिसमें दिखता …
खो गया - कविता - रज्जन राजा
झूठे दिखावे के दवाव में खो गया, आगे जाने के बहाव में खो गया। मानव अब पत्थर में तब्दील हुआ है, जादा धन कमाने के चाव में खो गया। भुलाकर …
काश कि बचपना होता - कविता - विनय विश्वा
एक वह गोली थी जो बचपन का हिस्सा हुआ करती थी एक यह गोली है जो शासन की बंदूक से निहत्थे को छलनी कर देती है कितना फ़र्क़ है है ना बचपन और स…
भाई बिन सूनो जगत् - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
भाई बिन सूनो जगत्, जस पादप बिन पात। हृदय सिन्धु में धड़कता, वही सहोदर भ्रात॥ वही सहोदर भ्रात, बने जीवन की धारा। जब संकट की मार, समर्पि…
देखा मैंने सब कुछ - कविता - बंदना ठाकुर
सुबह की रोशनी से लेकर रात के अँधेरे तक। दिन के सच से लेकर निशी के झूठ तक। चक्षुओ में झलकते अंभ से लेकर उनके शुष्क होने तक। चेहरे पर ब…
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