बंदना ठाकुर - पूर्व बर्धमान (पश्चिम बंगाल)
देखा मैंने सब कुछ - कविता - बंदना ठाकुर
शुक्रवार, दिसंबर 23, 2022
सुबह की रोशनी से लेकर
रात के अँधेरे तक।
दिन के सच से लेकर
निशी के झूठ तक।
चक्षुओ में झलकते अंभ से लेकर उनके शुष्क होने तक।
चेहरे पर बसी अद्भुत मुस्कान से लेकर
उसके ओझल होने तक।
देखा मैंने सब कुछ
हाँ हाँ सब कुछ।
रिश्तो के जन्म लेने से लेकर उसके मृत्यु तक।
पहचान बनने से लेकर
उनके बिगड़ने तक।
सफलता की दौड़ में भागने से लेकर
अंत में बैठे टीस तक।
लोगों के हाथ पकड़ने से लेकर उनके हाथ छोड़ने तक।
अपने को अपने से लेकर
बेगाना बनने तक।
हाँ हाँ देखा मैंने सब कुछ।
इस भीड़ भरे संसार से ख़ुद को अकेला पाने तक।
हाँ हाँ देखा मैंने सब कुछ।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर