भाई बिन सूनो जगत् - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'

भाई बिन सूनो जगत्, जस पादप बिन पात।
हृदय सिन्धु में धड़कता, वही सहोदर भ्रात॥

वही सहोदर भ्रात, बने जीवन की धारा।
जब संकट की मार, समर्पित कभी न हारा॥

'अंशु' पोष जस फूल, वहीं लाए अरुणाई।
शत्रु देखि भगि जाय, संग जब होता भाई॥

शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos