नववर्ष - कविता - हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल'

दिन गुज़रे, समय गुज़रा,
गुज़र गया फिर एक साल।
क्या खोया, क्या पाया,
मन पूछे बस यही सवाल।

गुज़रा वो मुश्किल दौर भी,
फिर से आ रहा नया सवेरा।
अब जंग का दौर थमेगा,
महामारी अब ना करे बेहाल।

ह्रदय तिमिर सब मिट जाएँ,
नव प्रभात के उजियारे में।
बढ़े गौरव अपनी संस्कृति का,
सम्पूर्ण जगत का हो कल्याण।

कर रहें स्वागत हैं लेकर,
हाथों में रंगीन चुस्कियाँ।
आने वाला हरपल बेहतर हो,
बना रहे हर मन ख़ुशहाल।

रंग बदला ना ऋतु बदली,
ना बदली सितारों की चाल।
हैं फिर भी मन में नई उमंगें,
क्यूँकि बदल रहा अंग्रेज़ी साल।

हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल' - कोरबा (छत्तीसगढ़)

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