मनोविकार - कविता - मोहित त्रिपाठी

उठता जब शत्रु मनोविकार,
फैल भयंकर दावानल-सा।
काम, क्रोध, लोभ, मोह से,
संचित पुण्यों को झुलसा।

मन से उपजा वाणी में उतरा,
करता दूषित आचार-विचार।
व्यक्तित्व, चरित्र पतन-कारक,
करता जन-मानस को दो चार।

उठता जब शत्रु मनोविकार।

मोहित त्रिपाठी - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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