आलिंगन - कविता - शुभा मिश्रा

तुम्हारे आलिंगन में सारी पीड़ाएँ
परास्त हो जाती हैं
चिर व्याकुल, उद्वेलित आक्रोश, चुप्पी 
गल कर बह जाता है।

कटु यात्राओं से संतप्त मन 
विस्मृत कर देना चाहता है
उन दुखों के दस्तावेज़ों को
जो आठों पहर जलते रहते हैं।

अपने अस्तित्व की खोज में 
तलुओं पर पड़े फफोले
फूटते रहते हैं आत्मा पर
प्रार्थनाएँ भी निरुपाय हो जाती हैं।

मंदिरों की सीढ़ियों पर भी भीड़ देख
प्रतीक्षा करती हूँ अपनी बारी की
शायद ईश्वर निमिष भर मुझे देख ले
बसंत भी अब व्यतीत होने को है।

तुम्हारे स्पर्श की सशक्त भाषा
औषधि बन उतर जाती है भीतर
असाध्य रोग मुक्त हो, कंचन सी आत्मा का
मुक्ति द्वार खुल जाता है।

शुभा मिश्रा - जशपुर (छत्तीसगढ़)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos