नया साल फिर आ रहा है - कविता - अनूप अंबर

नया साल फिर आ रहा है,
मन को मेरे जला रहा है।
दिसंबर फिर से जा रहा है,
नया साल फिर आ रहा है।

एकाकीपन ह्रदय जला रहा है,
दिसंबर भी अब जा रहा है।
जाने वाले चले तो गए, पर
फिर याद क्यूँ वो आ रहा है?
स्वप्न ह्रदय दुखा रहा है,
टूटा ख़्वाब चुभता जा रहा है।
मुझे लगा कि भुला दिया,
वो आज भी याद आ रहा है॥

नया साल फिर आ रहा है,
मन को मेरे जला रहा है।

अश्क बन नैनो पे छा रहा है,
नयन से नीर बहता जा रहा है।
वो साल अभी गुज़रा नहीं,
ये साल फिर से आ रहा है।
हर पात-पात उदास है,
पतझड़ भी अब आ रहा है।
नव पल्लव आएँगे लेकिन,
कुछ है जो छूटता जा रहा है॥

नया साल फिर आ रहा है,
मन को मेरे जला रहा है।

एक दर्पण में छवि हमने बसाई,
अब वो भी दरकता जा रहा है।
सारा जग सूना-सूना लागे,
मन भी सुकून न पा रहा है।
एक पुष्प खिला था फुलवारी में,
अब देखो गंध विसरा रहा है॥

नया साल फिर आ रहा है,
मन को मेरे जला रहा है।

वो शीत सी थी सर्द हवाएँ,
वो घुटी-घूटी सी दिल की आहें।
अँधेरे ने ढका था सारा अम्बर,
दिखती न थी कोई भी दिशाएँ,
लुटा था कारवाँ वहीं पे मेरा,
हम पा कर भी सब कुछ खो आए,
ये दर्द बहुत ही सता रहा है।

ये साल नया फिर आ रहा है,
मन को मेरे जला रहा है।
दिसंबर फिर से जा रहा है
ये साल नया फिर आ रहा है॥

अनूप अंबर - फ़र्रूख़ाबाद (उत्तर प्रदेश)

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