नववर्ष की पावन बेला,
शुभ संदेश सुनाती है।
भगा तम अंतर्मन से,
नव प्रभाती गाती है।
उदित शिशिर लालिमा,
धुँध परत हटाती है।
किंतु ठिठुरन-कंपन से,
तन को शीत सताती है।
किंतु-परंतु से भटकन,
अंतःकरण में आती है।
फिर भी भाव प्रखरता से,
नव लेखन रच जाती है।
आशा और आकांक्षाएँ,
मन अधीर बनाती है।
किंतु 'सर्वे भवन्तु सुखना'
गुनगुनी प्रभाती गाती है।
खट्टी-मीठी यादों में,
बीती साल जाती है।
नववर्ष मंगल वेला में,
सुगंध नव प्रभाती है॥
अजय गुप्ता 'अजेय' - जलेसर (उत्तर प्रदेश)