जयप्रकाश 'जय बाबू' - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
एक जीवन बीत गया - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
रविवार, जनवरी 01, 2023
यह वक्त जो बीत गया
सिर्फ़ वक्त नहीं था
सिर्फ़ एक साल
बारह मास या दिन नहीं था
एक जीवन था जो बीत गया।
आपसी रिश्तों के ताने बाने को
यह वक्त कुछ ऐसा बुन गया
जो उलझने सुलझी मुझसे
उन्हें चादर सा बुन गया
जो उलझे ही रहे
उनका साथ ही छूट गया
यह वक्त जो बीत गया।
कुछ की मरहम सी हँसी में
मुस्काया था तन मन
कुछ के लफ़्ज़ों की तपिश में
झुलसा था कोमल मन
ना जाने क्यों उसके जाने से
अंतर्मन भी टीस गया
यह वक्त जो बीत गया।
नन्हें-नन्हें पग पर चलकर
साल सलोना चला गया
ऐसा लगता है जैसे
यार सलोना चला गया
जैसे मुँह मोड़कर हमसे
अपना कोई मीत गया
यह वक्त जो बीत गया।
बहुत कुछ लिया तुमने
दिया हमें जो वह अलबेला है
कुछ और नहीं यह सब
बस क़िस्मत का खेला है
हार कर अपना सब कुछ मैं
तुमसे फिर से जीत गया
यह वक्त जो बीत गया।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
सम्बंधित रचनाएँ
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर