एक जीवन बीत गया - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'

यह वक्त जो बीत गया
सिर्फ़ वक्त नहीं था
सिर्फ़ एक साल 
बारह मास या दिन नहीं था
एक जीवन था जो बीत गया।

आपसी रिश्तों के ताने बाने को
यह वक्त कुछ ऐसा बुन गया
जो उलझने सुलझी मुझसे
उन्हें चादर सा बुन गया
जो उलझे ही रहे 
उनका साथ ही छूट गया
यह वक्त जो बीत गया।

कुछ की मरहम सी हँसी में
मुस्काया था तन मन
कुछ के लफ़्ज़ों की तपिश में
झुलसा था कोमल मन
ना जाने क्यों उसके जाने से
अंतर्मन भी टीस गया
यह वक्त जो बीत गया।

नन्हें-नन्हें पग पर चलकर
साल सलोना चला गया
ऐसा लगता है जैसे 
यार सलोना चला गया
जैसे मुँह मोड़कर हमसे
अपना कोई मीत गया
यह वक्त जो बीत गया।

बहुत कुछ लिया तुमने
दिया हमें जो वह अलबेला है
कुछ और नहीं यह सब
बस क़िस्मत का खेला है
हार कर अपना सब कुछ मैं
तुमसे फिर से जीत गया
यह वक्त जो बीत गया।

जयप्रकाश 'जय बाबू' - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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