खो गया - कविता - रज्जन राजा

झूठे दिखावे के दवाव में खो गया,
आगे जाने के बहाव में खो गया।
मानव अब पत्थर में तब्दील हुआ है,
जादा धन कमाने के चाव में खो गया।
भुलाकर इंसानियत अपने अंदर की,
इंसान बाहर के अलगाव में खो गया।
सही ग़लत की किसको पड़ी रज्जन,
हर शख़्स ख़ुद के लगाव में खो गया।

रज्जन राजा - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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