प्यास - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति

ज़िंदगी के रास्ते पर चलते हुए
अचानक एक दिन प्रतिरोध आता है
विपतियों का पहाड़ टूट पड़ता है
ऐसे समय में यह निश्चय कर पाना
कि हमारा जीवन 
विभीषिकाओं के जंगल में जल रहा है
हमारे संघर्षों की प्यास बढ़ जाती है।

सुरेंद्र प्रजापति - बलिया, गया (बिहार)

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