विक्रांत कुमार - बेगूसराय (बिहार)
ओ लड़की - कविता - विक्रांत कुमार
शुक्रवार, दिसंबर 30, 2022
बसंत की आहट से मन आह्लादित है
अंतर्मन से खोया हूँ
तुम्हें ध्यान-मग्न कर रहा हूँ
गेहूँ की खेत में
गलथल पगडंडियों पर लहलहाते
सरसों की कचोर टहनियों से
जब तुम बात करती हो
बथुआ और वन-दुभ की कच्ची कोंपल सिहरन करने लगती है।
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