बसंत की आहट से मन आह्लादित है
अंतर्मन से खोया हूँ
तुम्हें ध्यान-मग्न कर रहा हूँ
गेहूँ की खेत में
गलथल पगडंडियों पर लहलहाते
सरसों की कचोर टहनियों से
जब तुम बात करती हो
बथुआ और वन-दुभ की कच्ची कोंपल सिहरन करने लगती है।
विक्रांत कुमार - बेगूसराय (बिहार)