संदेश
एक गुड़िया सी लड़की - कविता - रमाकान्त चौधरी
एक गुड़िया सी लड़की घर में, बातें बहुत बनाती है, है नटखट शैतान बहुत, पर सबके दिल को भाती है। घर भर को है ख़ूब रिझाती, अपनी मीठी बोली …
होप - कविता - कर्मवीर सिरोवा 'क्रश'
नन्हीं सी पलके, बोल रही ये भीगी आँखें, मैं बेबस सा क्यूँ खड़ा हूँ चुप, सुनकर ये हज़ार बातें। मैं रोज़ मिलता हूँ और अंदर तक थर्रा जाता हूँ…
बचपन - कविता - अभिलाषा भाटी
ये दिन फिर ना आएँगे खिलते मुस्कुराते ये चेहरे ज़रा सी बात पे उदास होते ये चेहरे... फिर खिलखिलाकर हँस देते ये चेहरे... समेट लो इन पलों क…
कर्मवीर - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
उठो मित्र कुछ कार्य करो, भाग्य पे ना विश्वास करो, उठो मित्र कुछ कार्य करो। कर्म तनिक भी किए नहीं, फल की इच्छा करते हो। किया अगर कुछ बु…
गुरू तुम बहुत अनुग्रही - कविता - ईशांत त्रिपाठी
गुरू तुम बहुत अनुग्रही, करूणा करने वाले सरिता, वात्सल्य रूपी प्रकाशित सविता। किस विध तव गुण कही, गुरू तुम बहुत अनुग्रही। लक्ष-कोटि चित…
कर्मवीर बनता विजेता कर्मपथ - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
रावण ब्राह्मण ही नहीं वेदज्ञ था, महाकर्मवीर, पर अहंकारत्व था। वैज्ञानिक दार्शनिक बलवन्त था, विश्वविजेता, पर खल शापग्रस्त था। बहन अ…
कुल की शान - कविता - विजय कुमार सिन्हा
जिन उँगलियों को पकड़कर पिता ने चलना सिखाया, उसी वक्त वह अनकहे ही कह देता है– “जीवन के हर क्षण में तुम्हें प्यार करेंगे” पर प्रकट भाव म…
गिलहरी - कविता - सुनील कुमार महला
उसका बीजों, फलों, तरकारियों और कलियों को बड़े ही शालीन तरीक़े से अपने दोनों अग्रपादों से कुतर-कुतर खाना कुट-कुट की पैनी आवाज़ दिलों पर छो…
उषा - कविता - गोलेन्द्र पटेल
प्रात पुष्प था बहुत खिला हुआ जैसे लोहित आसमान का सूरज पृथ्वी पर उतर रहा हो (नदी सागर की यात्रा में नई सुबह है) बहुत धुआँ उठ रहा है उध…
शबरी के मन मध्य भक्ति दीप जलता है - सवैया छंद - देवेश बाजपेयी
शबरी के मन मध्य भक्ति दीप जलता है, जिससे प्रकाश टेर-टेर बीन लाती है। काल को चुनौती वह देती गुरु आज्ञा पाए, घोर अंधकार में सबेर बीन लात…
पारस - कविता - कर्मवीर सिरोवा 'क्रश'
ख़ुशियों को आना था वो आई भी, पर कुछ इस तरह जैसे भगवान रो पड़ा हैं बच्चें में। पिता कोई अलग ही शख़्स होता हैं, वो इस जहाँ का नहीं, वह सभी…
मन आज मेरा हारा हुआ जुआरी है - कविता - अतुल पाठक 'धैर्य'
मन आज मेरा हारा हुआ जुआरी है, मन जीता जिसने वह अनुपम छवि मनुहारी है। मुद्दतों बाद मन के आँगन में ख़ुशियों की प्यारी सी झलकारी है, जैसे …
माँ - कविता - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'
माँ का क़र्ज़ भूल ना जाना बचपन याद करो, अपना फ़र्ज़ भूल ना जाना बचपन याद करो। ममता ने जब छाँव करी जब कड़ी धूप छाई, निज आँचल में छिपा लिया ज…
बचपन की एक रात - कविता - इमरान खान
बचपन की एक रात मुझे पुकारती हुई। जुगनुओं की रोशनी में, भीगती हुई सैंकड़ों बूँदें। सफ़ेद चादर बर्फ़ की, चंद्रमा की काली रोशनी में। पंचम…
प्रीति - गीत - संजय राजभर 'समित'
हाज़िर हूँ मैं पलक बिछाए, तेरी ही अभिनंदन में। शुभगे! बाँध लिया है तुमने, मुझे प्रीति के बंधन में॥ नीरस जीवन था तब मेरा, मारा-मारा फिरत…
सादगी - मनहरण घनाक्षरी छंद - रमाकांत सोनी 'सुदर्शन'
सत्य शील सादगी हो, ईश्वर की बंदगी हो। आचरण प्रेम भर, सरिता बहाइए। संयम संस्कार मिले, स्नेह संग सदाचार। शालीनता जीवन में, सदा अपना…
पहेली जीवन की - कविता - प्रवीन 'पथिक'
अनबुझ पहेली जीवन की, जो बचा रहा वह नहीं रहा। जो टीश कभी उठी नहीं, वह शूल न हमसे सहा गया। कितनी नदियों का पता नहीं, जो जहाॅं चली, वो वह…
भाग्य - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
हे मानुष! भाग्य को कोस कर, विकास को अवरोध मत कर। श्रम बिंदु से लिख दे ललाट को, क्योंकि तू देव नहीं है नर। इंसान के सोच को, भाग्य पर …
वो बचपन - कविता - अनूप अंबर
वो बचपन कितना सुंदर था, संग संग मित्रों की टोली थी। हर दिन दिवाली जैसा लगता, हर शाम तो जैसे होली थी॥ संग-संग खेलते लड़ते थे, मन में वै…
सचमुच ही मर जाएगा - गीत - रमाकान्त चौधरी
साथ अगर जो छोड़ा तुमने, कुछ ऐसा कर जाएगा। रोज़-रोज़ जो तुमपर मरता, सचमुच ही मर जाएगा॥ इस हृदय का तेरे सिवा, किसी से कोई अनुबंध नहीं, सारी…
पुरुष की कल्पनाएँ - कविता - आयुष सोनी
दफ़्तर से लौटकर थका हुआ पलँग पर बेहोश सा लेटा हुआ एक पुरुष अपने मन में कैसी कल्पना करता है? वह कल्पना करता है उस दिन की जब वह सभी सा…
रहूँ ख़ुद में मलंग इतना - ग़ज़ल - सुनिल खेड़िवाल
अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन तक़ती : 122 122 122 122 122 रहूँ ख़ुद में मलंग इतना, गर्दिश-ए-अय्याम ना आए, तू आए या ना आए, तस…
बुद्धि और श्रद्धा - कविता - ईशांत त्रिपाठी
बुद्धि जो संशय रोगी हो, जिज्ञासु हो बहु बोधी हो। तिन बुद्धि के प्रश्न हो नाना, प्रश्न पे प्रश्न जन्मते जाना। ज्ञान गति इन प्रश्नन की ह…
माँ तो इक संसार है - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा 'निकुंज' | माँ पर दोहे
माँ तो इक संसार है, ममतांचल उद्गार। प्रेम दया करुणा क्षमा, परमधाम सुखसार॥ आज अकेला हूँ पड़ा, माँ ममता बिन शुन्य। छाँव कहाँ स्नेहिल हृद…
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