मन आज मेरा हारा हुआ जुआरी है,
मन जीता जिसने वह अनुपम छवि मनुहारी है।
मुद्दतों बाद मन के आँगन में ख़ुशियों की प्यारी सी झलकारी है,
जैसे महक उसकी हवाओं के साथ लगती कन्नौज की कुमारी है।
आज सारी कायनात प्यार की धुन गुनगुना रही है,
मानों ज़िंदगी जैसे ख़ूबसूरत नग़में चुनचुन कर ला रही है।
उम्र ज्यों ज्यों दिन पर दिन ढलती जा रही है,
मंज़र देखिए! दिल में प्यार की जगह बढ़ती जा रही है।
दिल में खट्टी मीठी यादों का संसार बना रही है,
प्रेमसरिता पल्लवित होकर सागर से प्रेम अपार पा रही है।
एहसासों की मोअत्तर ताज़गी दिल को लुभा रही है,
हवा अंबर की नवंबर को विदा कर दिसंबर बुला रही है।
प्यार का रिश्ता है वही है जो अनमोल हो,
यही भावना दिल की अपनेपन का समंदर ला रही है।
होंठों पे उसकी तबस्सुम जैसे कमल खिला रही है,
सीने से लगती तो लगता है जैसे रात की रानी सी महक आ रही है।
भीनी सुगंध फ़िज़ाओं में उड़-उड़ कर आ रही है,
साँसों में बस वह महक सी घुलती जा रही है।
जज़्बात की बूँदों का स्पर्श करा रही है,
प्यार की बरसात में तनमन भिगा रही है।
प्यार के लम्हों को प्यार से सजा रही है,
रेशम सी लिपटी होले-होले रूह में उतरकर आ रही है।
अतुल पाठक 'धैर्य' - जनपद हाथरस (उत्तर प्रदेश)