पारस - कविता - कर्मवीर सिरोवा 'क्रश'

ख़ुशियों को आना था वो आई भी,
पर कुछ इस तरह जैसे 
भगवान रो पड़ा हैं बच्चें में।

पिता कोई अलग ही शख़्स होता हैं,
वो इस जहाँ का नहीं,
वह सभी को हँसाता हैं,
मुझें भी हँसाएगा।

रोना एक क्षणिक समय हैं,
जीवन तो मेरा मुस्कराएगा,
आज नहीं तो कल,
मेरा बच्चा मुकम्मल स्वस्थ
होकर कहकहाएगा।

हाँ, भगवान! मैं नहीं टूटूँगा,
तेरे उपहार को मैं नाजों से सजाऊँगा,
मेरा नाम कर्मवीर हैं,
मैं हर बला से भिड़ जाऊँगा,
रहा तेरा आशीर्वाद तो मैं
ये दौर भी जीत जाऊँगा।

ये देखकर ज़रूर रोता भगवान 
भी झूमेगा, गाएगा और कहेगा
पारसा को ये पारस मुबारक हो।

और... तरन्नुम में ढलते हुए 
डमरू की धुन में गाएगा,
मेरे बच्चे! इक मुकम्मल जीवन
तुम्हें भी मुबारक हो।।

कर्मवीर सिरोवा 'क्रश' - झुंझुनू (राजस्थान)

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