हे मानुष!
भाग्य को
कोस कर,
विकास को
अवरोध मत कर।
श्रम बिंदु से
लिख दे ललाट को,
क्योंकि तू
देव नहीं है नर।
इंसान के
सोच को,
भाग्य पर नहीं,
मन में
बदलाव लाइए।
कर्म ही
श्रेष्ठ है,
यूँ मानकर,
हर उच्च काम अपनाइए।
माथे की लकीर ललाट को
श्रम बिंदु से
देख ले बदलकर
भाग्य को
कोष कर,
विकास को
अवरोध मत कर।
अगर विफल हुए
तो मत बैठो
माथा पकड़कर,
आख़िरी साँस
तक प्रयास कर,
तू आदमी है
किसी मेहनत से मत डर।
अपनी खोई
हिम्मत से,
भाग्य को
जगा कर,
तो देख ले।
ये क्यों भूल
जाता है कि,
तू मानव है मेहनत को
क़बूल कर।
लोग देखते
ही रह जाएँगे,
तू आगे बढ़
विजय ध्वज
पकड़ मज़बूत कर।
भाग्य को
कोस कर
विकास को
अवरोध मत कर।
भाग्य को
जो कोसा
करते है,
जो रहते है
निठल्ले असाह।
तू इंसान की
औलाद है
इतनी मेहनत कर,
की लोग लगा दे,
तुझे आह।
अपनी श्रम सरिता से,
भाग्य को मोड़ दे,
एक इतिहास बनाकर।
भाग्य को
कोस कर
विकास को
अवरोध मत कर।
रमेश चन्द्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)