माँ - कविता - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'

माँ का क़र्ज़ भूल ना जाना बचपन याद करो,
अपना फ़र्ज़ भूल ना जाना बचपन याद करो।
ममता ने जब छाँव करी जब कड़ी धूप छाई,
निज आँचल में छिपा लिया जब जब वर्षा आई।
माँ की गोदी भूल ना जाना बचपन याद करो,
रात की लोरी भूल ना जाना बचपन याद करो।
माँ ने ख़ुद का पिलाया हमको दूध बनाकर,
ख़ुद गीले में सोई जागी सूखे हमें सुलाकर।
माँ की नींदे भूल ना जाना बचपन याद करो,
बिस्तर गीले भूल ना जाना बचपन याद करो।
करती थी माँ घर के कारज गोदी हमें उठाकर,
झाड़ू तक भी दे देती थी पीठ पे हमें उठाकर।
माँ की सवारी भूल ना जाना बचपन याद करो,
अपनी बारी भूल ना जाना बचपन याद करो।
माता ने तो बना दिए हम कितने हृष्ट-पुष्ट,
हम माता की तनिक बात पर क्यों होते हैं रुष्ट?
बोझ नहीं थे माँ के लिए हम बचपन याद करो,
माता के सब उपकारों का चिंतन आज करो।

नृपेंद्र शर्मा 'सागर' - मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

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