अभिलाषा भाटी - चूरू (राजस्थान)
बचपन - कविता - अभिलाषा भाटी
गुरुवार, दिसंबर 22, 2022
ये दिन फिर ना आएँगे
खिलते मुस्कुराते ये चेहरे
ज़रा सी बात पे उदास होते
ये चेहरे...
फिर खिलखिलाकर हँस देते
ये चेहरे...
समेट लो इन पलों को
ये पल फिर ना आएँगे।
ना मार का डर ना डाँट का
ना पड़ोस का ना स्कूल का
खोए हैं अनजानी मस्ती में
समेट लो इस मस्ती को
ये मस्ती फिर ना आएँगी।
ना रात का साया रोक पाता है
ना दिन का उजाला इन्हें
इक चमक मिल जाती है
चेहरों को इनके
ना भूख है ना प्यास
हर पल खेलने की आस
जी लेने दो इन्हें ज़िंदादिली से
तुम तो बस समेट लो
ये ज़िंदादिली फिर ना आएँगी।
आज ना वो बचपन है
ना वो दोस्त
ना मस्ती है ना जोश
इक ज़िम्मेदारी है घेरे मुझे
माँ होने की, पत्नी होने की
बहू होने की, औरत होने की।
जी लेती हूँ अपना बचपन
इनके बचपन में
तभी कहती हूँ–
ये दिन फिर ना आएँगे
ये पल फिर ना आएँगे।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर