बचपन - कविता - अभिलाषा भाटी

ये दिन फिर ना आएँगे
खिलते मुस्कुराते ये चेहरे
ज़रा सी बात पे उदास होते
ये चेहरे...
फिर खिलखिलाकर हँस देते
ये चेहरे...
समेट लो इन पलों को
ये पल फिर ना आएँगे।

ना मार का डर ना डाँट का 
ना पड़ोस का ना स्कूल का 
खोए हैं अनजानी मस्ती में
समेट लो इस मस्ती को
ये मस्ती फिर ना आएँगी।

ना रात का साया रोक पाता है
ना दिन का उजाला इन्हें
इक चमक मिल जाती है
चेहरों को इनके
ना भूख है ना प्यास
हर पल खेलने की आस
जी लेने दो इन्हें ज़िंदादिली से
तुम तो बस समेट लो
ये ज़िंदादिली फिर ना आएँगी।

आज ना वो बचपन है
ना वो दोस्त
ना मस्ती है ना जोश
इक ज़िम्मेदारी है घेरे मुझे
माँ होने की, पत्नी होने की
बहू होने की, औरत होने की।

जी लेती हूँ अपना बचपन
इनके बचपन में
तभी कहती हूँ–
ये दिन फिर ना आएँगे
ये पल फिर ना आएँगे।

अभिलाषा भाटी - चूरू (राजस्थान)

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