कर्मवीर - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव

उठो मित्र कुछ कार्य करो,
भाग्य पे ना विश्वास करो,
उठो मित्र कुछ कार्य करो।

कर्म तनिक भी किए नहीं,
फल की इच्छा करते हो।
किया अगर कुछ बुरा नहीं,
फिर क्यों ख़ुद से डरते हो।
 
अमूल्य समय जो तुम्हें मिला है
उसको तुम ना नाश करो।
उठो मित्र कुछ कार्य करो,
भाग्य पे न विश्वास करो।
 
कर्म प्रधान है इस दुनिया में,
इसीलिए तुम आए हो।
पिछले कुछ सत्कर्मों से,
अमूल्य तन तुम पाए हो।

मिला तुम्हें है साधन उत्तम,
इसका तुम एहसास करो।
उठो मित्र कुछ कार्य करो,
भाग्य पे ना विश्वास करो।

जो जैसा भी करता है,
भाग्य भी वैसा बनता है।
भाग्य कर्म का लेखा भी,
बिरला यहाँ समझता है।

आगामी हो जीवन सुंदर,
ऐसा कुछ तो ख़ास करो।
उठो मित्र कुछ कार्य करो,
भाग्य पे ना विश्वास करो।

चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos