शबरी के मन मध्य भक्ति दीप जलता है,
जिससे प्रकाश टेर-टेर बीन लाती है।
काल को चुनौती वह देती गुरु आज्ञा पाए,
घोर अंधकार में सबेर बीन लाती है।
साधिका है जो सदैव ध्यान को बनाती पथ,
मन चक्षुओं से ज्ञान ढेर बीन लाती है।
अपने प्रभू को देख मन भूल जाता सब,
किंतु भोग के लिए वह बेर बीन लाती है।
देवेश बाजपेयी - सीतापुर (उत्तर प्रदेश)