साथ अगर जो छोड़ा तुमने, कुछ ऐसा कर जाएगा।
रोज़-रोज़ जो तुमपर मरता, सचमुच ही मर जाएगा॥
इस हृदय का तेरे सिवा, किसी से कोई अनुबंध नहीं,
सारी दुनिया में तुम जैसा, बना कोई संबंध नहीं।
चाँद के पार गए हो लेकिन, मुझको भुल नहीं जाना,
बस इतनी सी बंदिश है, और कोई प्रतिबंध नहीं॥
तेरी ज़रा सी नादानी में, वो क्या से क्या कर जाएगा।
रोज़-रोज़ जो तुमपर मरता, सचमुच ही मर जाएगा॥
तन छूने की चाह नहीं, पर मन से दूर नहीं करना,
मेरे नाम से माँग में अपनी, तुम सिंदूर नहीं भरना।
मत लेना तुम नाम मेरा, सामने दुनिया वालों के,
प्रीत की रीति निभाने वाला, तुम दस्तूर नहीं करना॥
जिस दिन मन से दूर किया, तो कुछ ऐसा कर जाएगा।
रोज़-रोज़ जो तुमपर मरता, सचमुच ही मर जाएगा॥
नील गगन में उड़ते पक्षी, दूर-दूर तक जाते हैं,
किंतु शाम को घर अपने, निश्चित ही आ जाते हैं।
इस दुनिया में पिंजरा लेकर, जाने कितने बैठे हैं,
दाने का लालच दे कर के, अच्छा जाल बिछाते हैं॥
अगर कहीं तुम फँसे जाल में, कैसे क्या कर पाएगा।
रोज़-रोज़ जो तुमपर मरता, सचमुच ही मर जाएगा॥
रमाकांत चौधरी - लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)