संदेश
नियति की निठुराई - कहानी - डॉ॰ वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज
कृष्णापुर स्थानीय बस अड्डे पर बिरजू दिन के क़रीब नौ बजे से ही इधर-उधर चक्कर लगा रहा था। दूर से ही किसी यात्री गाड़ी को आता देखता तो बेस…
माँ की ममता - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
आँचल में छुपाकर के अपने, ममता के स्नेह से नहलाती है, पाल पोस अपना जीवन दे, प्रिय सन्तति मनुज बनाती है। करुणामय माँ सुनहर सपने, सन्ता…
ज्योतिबा फुले - कविता - रमाकान्त चौधरी
सुनो सुनाएँ तुम्हें कहानी ज्योतिबा फुले महान की, नारी के उत्थान की, शोषित के सम्मान की। नारी का कोई मान न था, शोषित का सम्मान न था। क…
हे निशा निमंत्रण के द्योतक - कविता - राघवेंद्र सिंह | हरिवंशराय बच्चन पर कविता
आशा, वेदना और आत्मानुभूति के कवि, मधुशाला जैसी अमर कृति के द्योतक कवि शिरोमणि स्मृतिशेष हरिवंश राय बच्चन जी के चरणों में नमन वंदन करती…
इश्क़ जब बेहिसाब होता है - ग़ज़ल - शमा परवीन
अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1212 22 इश्क़ जब बेहिसाब होता है, हिज्र भी लाजवाब होता है। तेरा चेहरा है बज़्म में ऐसा, …
मूल चुका ना पाओगे - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी | माँ पर कविता
तुम कितने भी बड़े हो जाओगे, पर मूल ना चुका पाओगे। तुम करो गलतियाँ हज़ार पर माँ की बददुआ, कभी ना पाओगे। माँ ने कितने कष्ट सहे है, तुम्हा…
कण्वाश्रम - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
हिमालय के दक्षिण में, समुद्र के उत्तर में, भारत वर्ष है जहाँ भारत के वंशज रहते हैं। संभवतः मैं उसी जगह पर खड़ी हूँ जहाँ हस्तिनापुर के र…
झारखण्ड के अमर शहीदों को जोहार : अमर शहीद तिलका माँझी - धारावाहिक आलेख - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
अमर शहीद तिलका माँझी जन्म - 11 फ़रवरी, 1750 मृत्यु - 13 जनवरी, 1785 तिलका माँझी का जन्म बिहार के सुल्तानगंज में तिलकपुर नामक गाँव में…
कबाड़िन - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
ओ कूड़ा बीनने वाली! मल मिश्रित कूड़े में क्या खोजती हो? बाबूजी! कबाड़ मेरा कंचन है जो पालता है पेट मेरे बच्चों का साथ ही बड़ी झोली में…
हार का महत्व - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
समय रेत सा फिसल न जाए वक्त रहते तुम करो उपाय जीतने की आदत तो अच्छी पर हार से तू क्यों घबराए? हार तो वह अनमोल हार है जो जीवन में जीतने…
बेटियाँ मन की सच्ची - कुण्डलिया छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
गीता के संरक्षकों, बन बनिए जयचंद। कर बेटी के चमन में, दख़लंदाज़ी बंद॥ दख़लंदाज़ी बंद, बेटियाँ मन की सच्ची। शुरुआती है दौर, अभी भी लगती बच्…
नहीं बात करनी मत कीजै - गीत - सुशील कुमार
नहीं बात करनी मत कीजै। निशा चली है स्वप्न ब्याहने जलता दीपक मिले चाह में झूठे मन से झूठे सपनों को मेरे आकार न दीजै नहीं बात करनी मत की…
न दौलत इमारत विरासत सियासत न ताक़त हिमाक़त न कोई गिला है - ग़ज़ल - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन तक़ती : 122 122 122 122 122 122 122 122 न दौलत इमारत विरासत सियासत न ताक़…
लोक-लाज का डर - गीत - संजय राजभर 'समित'
सदाचार की संस्कृति मेरी, भेद मालूम है तुझको। प्रेम प्रदर्शित कैसे कर दूँ? लोक-लाज का डर मुझको। प्रेम पथिक तो सब मिलते हैं, पर प्र…
पौधे सा जीवन - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया
हरियाली की चाहत लेकर, पौधा जो दुनिया में आता है, मिलती उसको तपन धूप की, कभी बिन पानी के रह जाता है। दुनिया को सुख देने की चाहत में, ज…
एक पल के लिए भी मुख मोड़ती नहीं - ग़ज़ल - रज्जन राजा | ग़रीबी पर ग़ज़ल
अरकान : मफ़ऊलु फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन तक़ती : 221 2121 1221 212 एक पल के लिए भी मुख मोड़ती नहीं, नाता हमारा सुख से कभी जोड़ती नहीं। कई प…
'ण' माने कुछ नहीं - कविता - सतीश शर्मा 'सृजन'
पाठशाला में जब जाते थे, गुरुजी ख़ूब समझाते थे। गिनती ककहरा का था ठाठ, पहली कक्षा का यही पाठ। क से कबूतर, ख से खरगोश, च से चरखा ज से जोश…
संघर्ष - कविता - अनूप अंबर
तिनका-तिनका बीन-बीन कर, वो अपना नीड़ सजाता है । हवाओं का अभिमान तोड़ कर, वो लक्ष्य को अपने पाता है॥ ये मेहनत का आराधक है, आशाओं की लड़…
उससे पूछा कुछ दिन पहले - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन तक़ती : 22 22 22 22 उससे पूछा कुछ दिन पहले, बनकर मीत साथ में रह ले। रिश्ते को मज़बूती देकर, फिर जो जी…
मन में राम बसे हैं - कविता - पंकज कुमार दीक्षित
जो मात-पिता की सेवा करता, उस मन में धाम बसे हैं। वो भव से पार हुए जिनके, मन में राम बसे हैं॥ चक्र सृष्टि का चलता आया, जन्म मृत्यु फिर …
कौन दोषी? - कविता - अनिल कुमार केसरी
कौन है? जो पेड़ की डालों पर झूल रहा है, कोई मस्ती में आया; या कि अपनी बर्बादी पर मौत से खेल रहा है? लग रहा कोई आम इंसान है, फ़सल बर्बा…
वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई - कविता - राघवेंद्र सिंह
स्वाभिमान के रक्त से रंजित, हुई धरा यह प्रिय पावन। हिला हुकूमत का सिंहासन, और हिला सन् सत्तावन। राजवंश की शान थी जागी, जाग उठा वीरों क…
लक्ष्मीबाई - कविता - गोकुल कोठारी
विषय नहीं आज यह, वह नर थी या नारी थी, लेकिन थी हाहाकारी, आदिशक्ति अवतारी थी। मातृभूमि की आन पर जब भी बन आई है, नर ही क्या यहाँ नारी भी…
पुष्टिकारक बाजरा - गीत - उमेश यादव
सर्वश्रेष्ठ पोषक शरीर का, नियमित इसको खाएँ। पुष्टिकारक बाजरे को हम, भोजन में अपनाएँ॥ सर्वगुण संपन्न अन्न यह, बल आरोग्य बढ़ाता है। हृष्…
एक ठिगना पौधा - कविता - संजय कुमार चौरसिया 'साहित्य सृजन'
एक विशालकाय तरु के नीचे, ख़ुद उसकी पत्तियों से ढका हुआ, पृथ्वी का अर्द्ध छिपा भाग, जिसको देखते भावों में एक अभिव्यक्ति का नया अवतरण सीध…
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