मन में राम बसे हैं - कविता - पंकज कुमार दीक्षित

जो मात-पिता की सेवा करता,
उस मन में धाम बसे हैं।
वो भव से पार हुए जिनके,
मन में राम बसे हैं॥

चक्र सृष्टि का चलता आया,
जन्म मृत्यु फिर जन्म हुआ।
आज कहीं कल कहीं और,
भटकन में ही आजन्म रहा।
भज नाम राम का राम नाम में
मुक्ति के पंथ लसे हैं।
वो भव से पार हुए जिनके
मन में राम बसे हैं॥

राजतिलक से पूर्व एक दिन,
राज्य छोड़ जो वन में गए।
राजसुखों को छोड़ जिन्होंने,
वन में लाखों कष्ट सहे।
तुम राम नाम का गान करो,
इस गान में राम बसे हैं।
वो भव से पार हुए जिनके,
मन में राम बसे हैं॥

पंकज कुमार दीक्षित - नैनीताल (उत्तराखंड)

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