पौधे सा जीवन - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया

हरियाली की चाहत लेकर,
पौधा जो दुनिया में आता है,
मिलती उसको तपन धूप की,
कभी बिन पानी के रह जाता है।

दुनिया को सुख देने की चाहत में, 
जैसे-जैसे वह बढ़ता जाता है,
कोई तोड़ता पाती उसकी,
कोई भूख उसी से मिटाता है।

अच्छा करने की चाहत का,
अनूठा फल वह पाता है,
कोई तोड़ता टहनी उसकी, 
कोई घर उसी से बनाता है।

किसी के घर में चूल्हा जलता,
कोई डंडा उसी से बनाता है,
क्या पाता है दुनिया में आकर,
एक पौधा यही हमें समझाता है।

अच्छा काम करने वालों को,
संदेश यही दे जाता है,
हर दर्द उपेक्षा सहकर तुम भी, 
बस रुकना ना चलते जाना।
पौधे सा जीवन तुम लेकर,
मुस्कान किसी को बस देते जाना।

डॉ॰ आलोक चांटिया - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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